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Showing posts from 2015

तकियानूसी

देखता हूँ रोज़ तमाशा देश भक्ति का मगर कोई देश भक्त नहीं मिला.... ख़ुद से जूजते इंसानों की भीड़ मिली और तकियानूसी बयानबाज़ो का काफिला!!!!!

दर्द अगर

दर्द अगर मरहम बन जाता  बिन तेरे जीना मेरा... थोड़ा आसान हो जाता!!! यादों के धुऐं से... दम का घुटना थम जाता!!! दर्द अगर मरहम बन जाता बिन तेरे जीना मेरा... थोड़ा आसान हो जाता!!!

बचपन

इक चवन्नी और मुट्ठी जितनी जेब थी हसी अम्बर  जैसी  फैली हवा  जैसी  ख्वाहिशें क़भी इधर  कभी उधर कभी उस गली कभी उस दुकान लपलपाती जीभ ऐसी जो  हर खाने की चीज़ पर मन बना लेती थी बचपन कुछ ऐसा ही तो था याद आता है रह रह कर जब बड़ी बड़ी जेबों में छुट्टे पैसे कभी कबार खनकतें हैं तो ... 

मैं बहुत रोया !!!

मैं बहुत रोया मैं बहुत रोया अपनो में गैर होके मैं बहुत रोया मैं बहुत रोया दर्द की चादर ओढ़कर सिसक भरी करवटें लेकर आह की साँस भर भर के मैं बहुत रोया मैं बहुत रोया