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Showing posts from July, 2022
Short Story  "वशीकरण"  इंतज़ार करते-करते विभा का आत्म विभोर हो जाता। सहर से संध्या और रात्रि कैसे, कब, क्यूँ बीत जाती ध्यान ही नहीं रहता। मोक्ष, मुक्ति, मोह और आत्म निरीक्षण सब के सब सिर्फ़ एक ही नाम का जाप विभा। विभा का अर्थ किरण होता है और मेरी चमकती दहकती किरण का कारण भी यही थी। सुंदर, गेहुआ रंग, छोटी क़द काठी, रेशम से केसु, रूखसार पर हँसी के बुलबुले उमड़ते सदैव, नैन मृगनैनि जिनसे नज़रें मिले तो आप उन्माद में चलें जाए। अखियंन में कजरा लगाए वो ठुमक-ठुमक आती और बग़ल से गुज़रती हुई जब निकलती तो मन में मृगदंग बजने लगता,  मृगतृष्णा हो जाती। जितनी दूर वो जाती साँसों में तल्ख़ी और गले में चुभन होती। जीवन जैसे आरम्भ और अंतिम छण तक पहुँच जाता उसके आगमन और पलायन से। प्रेम की परिभाषा और उसका विवरण विभा। मेरे अंतर ध्यान के मार्ग की मार्ग दर्शक, वो यात्रा जिसका कोई पड़ाव या मंज़िल ना हो। भोर होती ही उसके घर की चोखट पर मेरी नज़रें नतमस्तक होतीं, ध्यान की लग्न जागती, मन की तरंगे उज्वलित उसके दर्शन से होतीं। उसके आगे पीछे, दाएँ बाएँ, दूर क़रीब, हर स्थान पर मैं ख़ुद को पाता।  मेरी आशिक़ी क
 Short Story  "रेल में प्यार के खेल में"  दिल्ली से निकली रेल और मैं नीचे वाली बर्थ पर लाला लखेंदर के जैसे पसर कर लेट गया थोड़ी देर बाद एक सुंदर सुंदरी नाक में चाँदी की मुंदरी पहने फटी जीन और शॉट टॉप गले में लम्बी सी चेन जिसमें आधा टूटा हुआ दिल नुमा आकार का लॉकट। सामने मेरे पेरों के खड़ी, एक निगाह मुझे निहारा और समझ गयी कि ये ना उठेगा अपनी बर्थ से फिर मेरे सामने वाली बर्थ पर नज़र गड़ाई वहाँ भी एक अंकल जी हाथ में उर्दू का अख़बार लिए औंधे लेते पड़े थे बिलकुल मेरे जैसे ही सुस्त, पेट उनका कुर्ता अब नहीं तब फाड़ कर  चीख़ पड़े की मुझे कसरत कराओ, पजामे का नाड़ा बर्थ से लटक रहा था घड़ी के काँटे के जैसे और विनती कर रहा था कि चीचा मुझे पजामे के बाहर नहीं भीतर ।  पुरानी दिल्ली से एक नव युवक यानी के मैं और एक पूराने चीचा यानी वो जो सामने अख़बार चाटने में लगे थे दोनों चढ़े थे। लड़की ने थोड़ी देर इधर उधर क़दमचहली की और फिर पूछा क्या आप मेरा ये बैग ऊपर रख दोगे। मैने देखा क्या, मैं तो प्रतीक्षा ही कर रहा था कि ये कब इस सहायता केंद्र से सम्पर्क करे और सहायता में बहुत घमंड होता है याद रखना जब
इश्क़ ने क्या-क्या सिखाया। कुछ अच्छा, कुछ बुरा,  कुछ अपना, कुछ पराया ।  जिसे ना कह सके अपना  उसी को अपना बताया। - चीची 
Short  Story  "बम्बई की बरसात"  रेडीओ पर चलता गीत "ऐ दिल - ए - नादान" जिसके संगीतकार हैं श्री ख़य्याम साहेब और गीतकार हैं जाँ निसार अख़्तर साहेब अपने मशहूर गीतकार जावेद अख़्तर साहेब के वालिद साहेब और अभिनेता फ़रहान अख़्तर के दादा श्री। ख़य्याम साहेब के संगीत में भारतीय साहित्य संगीत की मिठास कूट-कूट कर भरी है। किसी भी गीत को ले लो आपको साहित्य संगीत के तार और तरंग गाते, गुनगुनाते और नाचते मिलेंगे। झीनी-झीनी बारिश की जालीदार बूँदों की झालर को मग्न हो कर देखता मैं अपने घर की खिड़की से, दुनिया के शोर-ओ-गुल से परे किसी अलग ही जहाँ में घूमता मेरा मन सुकून और चैन से सराबोर खोया-खोया। अब्र को निहारते मेरे ये दो नैन जिनमें नमी थी, आस थी, प्यास थी और ख़ुद को खोजने की तलब की मैं किस तरफ़ भाग रहा हूँ। क्या मैं सही हूँ या सही ग़लत से परे मेरे ख़्वाब और ये जो बेचैनी है, ये क्यूँ हैं। क्यूँ हर वक़्त अपनी ही धुन में घूमता हूँ, क्यूँ ला-पता हूँ, क्या है जो पाना चाहता हूँ, किसको पाना चाहता हूँ, या कुछ भी नहीं पाना चाहता क्यूँकि उसको पा लेने के बाद क्या। फिर कोई नई चाह, फिर कोई नई द
Short Story  "पप्पी"   पप्पी मेरा बचपन का दोस्त। दिल्ली की गलियों के घुमक्कड। दिन भर बस इधर उधर मँडराते रहना वजह हो या बेवजह। हर गली, हर सड़क, हर मोहल्ला नाप रखा था हमने। आँख बंद करके बोल दो फलाने के यहाँ जाना है सीधा उसके ठीकने पर क़दम जा कर रुकेंगे। लड़कियों की छुट्टी के वक़्त गली के बाहर बनी पुलिया पर दोपहर बारह बजे सटीक आ कर बैठ जाते और आती जाती सभी लड़कियों को ताड़ना और उनको अपनी निगाह के रास्ते उनके घर तक छोड़ना पुलिया पर बैठे-बैठे जब तक की वो ओझल ना हुई हो आँख से। कमबख़्त मारे, नासपीटे, आवारा, बच्चलन, बे-ग़ैरत, बे-हया ये सब नाम रखे थे लड़कियों ने जिनसे भी हम दोस्ती या मोहब्बत का प्रस्ताव देते। किसी की आँख को एक ना भाते जबकि हम किसी को भी छेड़ते नहीं, ना व्यंग कसते। दोनों रोज़ प्रेमिका की आस लगाए पुलिया पर अपना हुलीय बादल बादल कर बैठ जाते की किसी को तो हम पसंद आएँगे। कोशिश की आस टूटने लगी थी और हम मोहल्ले के सबसे निक्कमे, नकारा, कामचोर, बदनाम बनते जा रहे थे। जिसकी ख़बर हम दोनों को छोड़ कर बाक़ी पूरी दुनिया को थी। हमें तो हम दोनों राम श्याम लगते थे बिलकुल सीधे शरीफ़। जान