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Showing posts from 2022
Short Story  "वशीकरण"  इंतज़ार करते-करते विभा का आत्म विभोर हो जाता। सहर से संध्या और रात्रि कैसे, कब, क्यूँ बीत जाती ध्यान ही नहीं रहता। मोक्ष, मुक्ति, मोह और आत्म निरीक्षण सब के सब सिर्फ़ एक ही नाम का जाप विभा। विभा का अर्थ किरण होता है और मेरी चमकती दहकती किरण का कारण भी यही थी। सुंदर, गेहुआ रंग, छोटी क़द काठी, रेशम से केसु, रूखसार पर हँसी के बुलबुले उमड़ते सदैव, नैन मृगनैनि जिनसे नज़रें मिले तो आप उन्माद में चलें जाए। अखियंन में कजरा लगाए वो ठुमक-ठुमक आती और बग़ल से गुज़रती हुई जब निकलती तो मन में मृगदंग बजने लगता,  मृगतृष्णा हो जाती। जितनी दूर वो जाती साँसों में तल्ख़ी और गले में चुभन होती। जीवन जैसे आरम्भ और अंतिम छण तक पहुँच जाता उसके आगमन और पलायन से। प्रेम की परिभाषा और उसका विवरण विभा। मेरे अंतर ध्यान के मार्ग की मार्ग दर्शक, वो यात्रा जिसका कोई पड़ाव या मंज़िल ना हो। भोर होती ही उसके घर की चोखट पर मेरी नज़रें नतमस्तक होतीं, ध्यान की लग्न जागती, मन की तरंगे उज्वलित उसके दर्शन से होतीं। उसके आगे पीछे, दाएँ बाएँ, दूर क़रीब, हर स्थान पर मैं ख़ुद को पाता।  मेरी आशिक़ी क
 Short Story  "रेल में प्यार के खेल में"  दिल्ली से निकली रेल और मैं नीचे वाली बर्थ पर लाला लखेंदर के जैसे पसर कर लेट गया थोड़ी देर बाद एक सुंदर सुंदरी नाक में चाँदी की मुंदरी पहने फटी जीन और शॉट टॉप गले में लम्बी सी चेन जिसमें आधा टूटा हुआ दिल नुमा आकार का लॉकट। सामने मेरे पेरों के खड़ी, एक निगाह मुझे निहारा और समझ गयी कि ये ना उठेगा अपनी बर्थ से फिर मेरे सामने वाली बर्थ पर नज़र गड़ाई वहाँ भी एक अंकल जी हाथ में उर्दू का अख़बार लिए औंधे लेते पड़े थे बिलकुल मेरे जैसे ही सुस्त, पेट उनका कुर्ता अब नहीं तब फाड़ कर  चीख़ पड़े की मुझे कसरत कराओ, पजामे का नाड़ा बर्थ से लटक रहा था घड़ी के काँटे के जैसे और विनती कर रहा था कि चीचा मुझे पजामे के बाहर नहीं भीतर ।  पुरानी दिल्ली से एक नव युवक यानी के मैं और एक पूराने चीचा यानी वो जो सामने अख़बार चाटने में लगे थे दोनों चढ़े थे। लड़की ने थोड़ी देर इधर उधर क़दमचहली की और फिर पूछा क्या आप मेरा ये बैग ऊपर रख दोगे। मैने देखा क्या, मैं तो प्रतीक्षा ही कर रहा था कि ये कब इस सहायता केंद्र से सम्पर्क करे और सहायता में बहुत घमंड होता है याद रखना जब
इश्क़ ने क्या-क्या सिखाया। कुछ अच्छा, कुछ बुरा,  कुछ अपना, कुछ पराया ।  जिसे ना कह सके अपना  उसी को अपना बताया। - चीची 
Short  Story  "बम्बई की बरसात"  रेडीओ पर चलता गीत "ऐ दिल - ए - नादान" जिसके संगीतकार हैं श्री ख़य्याम साहेब और गीतकार हैं जाँ निसार अख़्तर साहेब अपने मशहूर गीतकार जावेद अख़्तर साहेब के वालिद साहेब और अभिनेता फ़रहान अख़्तर के दादा श्री। ख़य्याम साहेब के संगीत में भारतीय साहित्य संगीत की मिठास कूट-कूट कर भरी है। किसी भी गीत को ले लो आपको साहित्य संगीत के तार और तरंग गाते, गुनगुनाते और नाचते मिलेंगे। झीनी-झीनी बारिश की जालीदार बूँदों की झालर को मग्न हो कर देखता मैं अपने घर की खिड़की से, दुनिया के शोर-ओ-गुल से परे किसी अलग ही जहाँ में घूमता मेरा मन सुकून और चैन से सराबोर खोया-खोया। अब्र को निहारते मेरे ये दो नैन जिनमें नमी थी, आस थी, प्यास थी और ख़ुद को खोजने की तलब की मैं किस तरफ़ भाग रहा हूँ। क्या मैं सही हूँ या सही ग़लत से परे मेरे ख़्वाब और ये जो बेचैनी है, ये क्यूँ हैं। क्यूँ हर वक़्त अपनी ही धुन में घूमता हूँ, क्यूँ ला-पता हूँ, क्या है जो पाना चाहता हूँ, किसको पाना चाहता हूँ, या कुछ भी नहीं पाना चाहता क्यूँकि उसको पा लेने के बाद क्या। फिर कोई नई चाह, फिर कोई नई द
Short Story  "पप्पी"   पप्पी मेरा बचपन का दोस्त। दिल्ली की गलियों के घुमक्कड। दिन भर बस इधर उधर मँडराते रहना वजह हो या बेवजह। हर गली, हर सड़क, हर मोहल्ला नाप रखा था हमने। आँख बंद करके बोल दो फलाने के यहाँ जाना है सीधा उसके ठीकने पर क़दम जा कर रुकेंगे। लड़कियों की छुट्टी के वक़्त गली के बाहर बनी पुलिया पर दोपहर बारह बजे सटीक आ कर बैठ जाते और आती जाती सभी लड़कियों को ताड़ना और उनको अपनी निगाह के रास्ते उनके घर तक छोड़ना पुलिया पर बैठे-बैठे जब तक की वो ओझल ना हुई हो आँख से। कमबख़्त मारे, नासपीटे, आवारा, बच्चलन, बे-ग़ैरत, बे-हया ये सब नाम रखे थे लड़कियों ने जिनसे भी हम दोस्ती या मोहब्बत का प्रस्ताव देते। किसी की आँख को एक ना भाते जबकि हम किसी को भी छेड़ते नहीं, ना व्यंग कसते। दोनों रोज़ प्रेमिका की आस लगाए पुलिया पर अपना हुलीय बादल बादल कर बैठ जाते की किसी को तो हम पसंद आएँगे। कोशिश की आस टूटने लगी थी और हम मोहल्ले के सबसे निक्कमे, नकारा, कामचोर, बदनाम बनते जा रहे थे। जिसकी ख़बर हम दोनों को छोड़ कर बाक़ी पूरी दुनिया को थी। हमें तो हम दोनों राम श्याम लगते थे बिलकुल सीधे शरीफ़। जान
Short  Story   "पुश्तैनी हवेली"  पुश्तैनी  हवेली  जिसके हर कोने पे कायी   जमी पड़ी है।  दरों दीवारों पे उम्मीद की दरारें हैं ।  धुँधली  रोशनी के साये और छांव के निशाँ हैं।  परछाइयों के   पैरों   के साएँ , आहटों के शोर हैं ।  सन्नाटों का कोहरा  एकांत में शांत बुत बना खड़ा  है।  रात का बिस्तर सिकुड़ कर जमी पे पड़ा है ।  बरसात की बूँदो के आँसू रोते-रोते निहार रहे हैं। हर  इक दरवाज़ों पे रिश्तों की  हथेलियों की थपथपाहटे हैं ।  मेरी नानी माँ  की पुश्तैनी हवेली  ऐसे ही  खड़ी   है। बचपन में लड़खड़ाते क़दम और तोतली ज़बान में गिरते पड़ते, दौड़ते हुए नानी की बाहों से लिपट जाते। माँ की गोद से भी ज़्यादा प्यारी नानी माँ की बाहें। उनके आगे पीछे बस घूमते रहो दिनभर। नानी माँ के सुख दुःख के कारण उनके नाती और नतनी। आँख और जिगर के टुकड़े। जैसे-जैसे हम बड़े हुए नानी माँ बुज़ुर्ग होती गयी जिसका एहसास मुझे तब हुआ जब वो अपने अंतिम समय में पहुँची। उनको खोने का सत्य सामने था लेकिन फिर भी मुझे उसे मानना नहीं था। उनको खोने की पीड़ा अत्यंत ही दर्दनाक और
Short Story  "चलो पंजाब"   सन 2004, 19 जनवरी।   मैं और मेरे नौ दोस्तों की मंडली निकली पठानकोट हमारे दोस्त विक्की की बहन की शादी के लिए पंजाब। दिल्ली रेल्वे स्टेशन से ट्रेन पकड़ी और सफ़र के लिए सब अपने-अपने हिसाब किताब से साजों सामान लेकर आए थे खाने का, ध्रुमपान, मदिरापान और मनोरंजन का जैसे सतरंज, लूडो, ताश। सर्दी में ट्रेन यात्रा मैने बहुत कम की थी वो भी ऐसे इतने बड़े जमघट के साथ तो मैं बहुत ही रोमांचित और अत्यंत ख़ुश था। मेरे साथ मेरा भाई और अज़ीज़ दोस्त डिम्पल था। बचपन से ही हम दोनों के दूसरे के पक्के याड़ी मतलब कोई त्योहार हो साथ, कोई खेल हो साथ, कहीं जाना हो साथ, DJ पे डान्स करना हो साथ, माँ बाप से गाली खानी हो साथ, किसी से झगड़ा करना हो साथ, लड़की पटानी हो साथ जहाँ तक सोच सकते हो वहाँ तक साथ। विक्की भी बहुत ख़ास दोस्तों में से एक इसलिए तो उसकी बहन की शादी में जा रहे हैं। ट्रेन ने प्लाट्फ़ोर्म से छुक-छुक सीटी मारते हुए चलना शुरू किया और हम सब ने ज़ोर की शोर मचाया "जय माता दी" बोल कर। सब बहुत ख़ुश और मस्ती में चूर। एक अलग ही रंग और रौनक़ थी सबके चेहरे पे मानो ख़ु
 Short Story  "क़िस्सा बारहवीं कक्षा का "  पी. टी. आई. साहेब स्कूल के सबसे खड़ूस, ख़तरनाक और निर्दायी। उनके नाम से पतलून गीली और गला सूख जाता। जिस कक्षा में वो घुसते उस कक्षा में दंगल होता क्यूँकि वो  विद्यार्थीयों  को ऐसे पीटते जैसे दूसरे के खेत में किसी ने अपना बछड़ा छोड़ दिया हो और उस खेत का मालिक आ गया लठ लेकर बिना सोचे समझे सूते जाओ। हर विद्यार्थी का हाथ पैर काँपने लगता उनको आता देख या उनके बारे में कोई बात भी कर ले। जी हाँ! मैं हूँ वो जिसने उनसे पंगा लिया! मैं हूँ वो फ़ौजी अपने स्कूल के विद्यार्थी संग का जाँबाज़ सैनिक जिसको हौसला और भरोशा था कि वो इस शोषण भरे काल का अंत करेगा।   सरकारी स्कूल में पढ़ने का सबसे बड़ा नुक़सान सिर्फ़ लड़के और लड़कियों का स्कूल उसके बग़ल में केवल बारह फ़ीट की दीवार। पी. टी. आई.   साहेब को जिस कक्षा के बच्चों की ज़्यादा शिकायतें आतीं वो उन विद्यार्थियों को नहीं मारते जो बदमाशी करते बल्कि पूरी कक्षा को प्रार्थना मैदान में प्रार्थना के बाद सुबह-सुबह मुर्ग़ा बना कर उसके बाद पीछवाड़े पे लात मारते और बोलते दुबारा मुर्ग़ा बनो। लड़कियाँ अपने स्कूल के
 Short  Story    "छज्जे का इश्क़"   दिल्ली की जून की धूप का रूप इतना चम-चम और चमकीला की उससे नैन मिलाना ना-मुमकिन और उसी धूधिया धूप के सौंदर्य के मन भावन दृश्य में नैन मटक्का हो गया जब गली से गुज़रते वक़्त मोहल्ले में आयी नई-नई किरायेदार से जो तमतमाती धूप में पहले माहले के छज्जे पे ऐसे लटकी हुई थी जैसे सीलिंग से झूमर। उसको देखते ही आँखें चुम्बक के जैसे उसके चेहरे पे चिपक गयी और उसकी चीख़ती आवाज़ भी सुरीली लगी जिससे कान में से ख़ून निकल आए ऐसी पतली तीखी आवाज़। कहते हैं ना पहली नज़र का प्यार अनूठा और चौकाने वाला होता है। बस वही हुआ उसने जब मुझे देखा तो चिल्ला कर बोली हाँ! क्या है? क्या घूर रहे हो? मैं सकपका कर रह गया और गर्दन नीचे करके धीरे से खिसक गया वहाँ से। ज़ालिम और ज़हर ये लड़की कुछ नहीं सोचती है। कहीं भी कुछ भी किसी को भी डाँट  देती है या लड़ पड़ती है। क्रांतिकारी और बाग़ी दोनों। ख़ूबसूरती मनभावन लुभावनी और ख़तरनाक होती हीं हैं।  जब से उसे देखा बस उसके छज्जे पे नज़र की वो नज़र आ जाए और जब आती दिन बन जाता। ख़ुशी- ख़ुशी दिन रात कट जाते। पढ़ायी लिखायी, यारी दोस्ती, भाईचारा