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Showing posts from May, 2017

मौसम की तबियत

शहर की हवा कुछ नासाज़  लगती है   मौसम का मूड और तबियत आज फिर ख़राब लगती है  अजीब ही किरदार है पल में शोला पल में शबनम  कभी बहुत हँस  हँस के बात करता है तो बिजलियाँ चमकती हैं  तो कभी सीधे मुँह जवाब तक नहीं देता   और महीनो मिलता तक नहीं  बादलों  के साथ दूर दूर दूर  कभी   क्रीड़ा करता हुआ दिख जाता  है  आवाज़ लगाता हूँ तो अनसुना करके और दूर चला जाता है  इसको मनाने  के तरीके ढूंढ़ता हूँ पर वो अपनी ही धुन में रहता है  जब मन करता है तभी आता है और जाता है  मौसम भी अजीब किरदार है। .... 

ख़ुद पे धूल

ख़ुद पे " धूल " जमी थी बहुत ... झाड़ा तो कुछ रिश्ते मिले ... पुरानी हँसी कुछ क़िस्से और गिले ... कुछ अधूरे एहसास ...   कुछ अधूरी बातें जो बीच में ही रह गयी   पर थी बहुत ख़ास ...  ख़ुद को झाड़ लेना चाहिए वक़्त रहते   " वरना "... " धूल " कभी कभी " शूल " की तरह चुभती रहती है !!!

समझदारों ने समाज बना डाला

समझदारों ने समाज बना डाला  नियम कानून रीति रिवाज़ लिख डाला  नियुक्ति की पंडितों मौलवियों और पादरियों की  इन सबको धर्म का ठेकेदार बना डाला  बिना डिग्री बिना क्वालिफिकेशन  बिना वोट का ये इलेक्शन  वाह रे वाह अद्धभुत सेलेकेशन  बिना इंसान और इंसानियत के कैसा धर्म और कैसा समाज  बात बात पे करते क्यों हो इतना विवाद