गुल्लक / Piggy Bank रविवार के इंतज़ार में पूरा हफ़्ता यूँ लगता था जैसे दिन ने ढलना छोड़ दिया हो और उसको अब कभी बूढ़ा नहीं होना और रात को अपने रंग से नफ़रत हो गयी है और वो सुबह की सफ़ेदी पोते हमें चिडा़ रही हो ... पर जब रविवार आता तो पिताजी से जेब ख़र्च के नाम पे पाँच रुपये मिलते थे तो मानो उन्होंने सारी ज़मीन जायदाद मेरे नाम कर दी हो..उस पाँच रुपए के नोट की क़ीमत बहुमूल्य थी. इतनी बड़ी रक़म के लिए ख़ुद का बैंक खोला हुआ था जिसका नाम था "गुल्लक" . चवन्नी अट्ठानी एक रुपए दो रुपए कर कर के रक़म जोड़ते थे .ख़ुद के बैंक में चार आना आठ आना की बचत की जमा भी बड़ी मन को भाती थी. उँगलियों पे गिनना और बार बार गिन के ख़ुशी मनाना जमाराशि पर एक अधभूत एहसास. गुल्लक को हम और गुल्लक हमको निहारती रोज़ाना, आँखों आँखों में हम दोनों एक दूसरे को देख देख ख़ुश होते रहते. कुछ भी ख़रीदने की सोचते तो बैंक बेलेंस अर्थात गुल्लक याद आती. फिर धीरे धीरे हम बड़े हो गए और गुल्लक की जगह ए॰टी॰एम॰ ने ली और वो भी ऐसी सुविधा जो जेब में लेके घूमते रहते हैं और ख़ुद के बैंक की जगह सामाजिक,सरकारी, और सार्वज