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Showing posts from 2017

बारिश की बूँदों

कभी बारिश की बूँदो का हाथ पकड़ के दौड़ता था बचपन ... आज कार का स्टीयरिंग छोड़ती नहीं जवानी ... कभी हवा से दौड़ लगाते थे क़दम ... आज एयर कंडीशनर में सुस्त बेठे रहते हैं क़दम !!! Poet "Chichi" 

मौसम की तबियत

शहर की हवा कुछ नासाज़  लगती है   मौसम का मूड और तबियत आज फिर ख़राब लगती है  अजीब ही किरदार है पल में शोला पल में शबनम  कभी बहुत हँस  हँस के बात करता है तो बिजलियाँ चमकती हैं  तो कभी सीधे मुँह जवाब तक नहीं देता   और महीनो मिलता तक नहीं  बादलों  के साथ दूर दूर दूर  कभी   क्रीड़ा करता हुआ दिख जाता  है  आवाज़ लगाता हूँ तो अनसुना करके और दूर चला जाता है  इसको मनाने  के तरीके ढूंढ़ता हूँ पर वो अपनी ही धुन में रहता है  जब मन करता है तभी आता है और जाता है  मौसम भी अजीब किरदार है। .... 

ख़ुद पे धूल

ख़ुद पे " धूल " जमी थी बहुत ... झाड़ा तो कुछ रिश्ते मिले ... पुरानी हँसी कुछ क़िस्से और गिले ... कुछ अधूरे एहसास ...   कुछ अधूरी बातें जो बीच में ही रह गयी   पर थी बहुत ख़ास ...  ख़ुद को झाड़ लेना चाहिए वक़्त रहते   " वरना "... " धूल " कभी कभी " शूल " की तरह चुभती रहती है !!!

समझदारों ने समाज बना डाला

समझदारों ने समाज बना डाला  नियम कानून रीति रिवाज़ लिख डाला  नियुक्ति की पंडितों मौलवियों और पादरियों की  इन सबको धर्म का ठेकेदार बना डाला  बिना डिग्री बिना क्वालिफिकेशन  बिना वोट का ये इलेक्शन  वाह रे वाह अद्धभुत सेलेकेशन  बिना इंसान और इंसानियत के कैसा धर्म और कैसा समाज  बात बात पे करते क्यों हो इतना विवाद 

गुल्लक / Piggy Bank

गुल्लक / Piggy Bank  रविवार के इंतज़ार में पूरा हफ़्ता यूँ लगता था जैसे दिन ने ढलना छोड़ दिया हो और उसको अब कभी बूढ़ा नहीं होना और रात को अपने रंग से नफ़रत हो गयी है और वो सुबह की सफ़ेदी पोते हमें चिडा़ रही हो ... पर जब रविवार आता तो पिताजी से जेब ख़र्च के नाम पे पाँच रुपये मिलते थे तो मानो उन्होंने सारी ज़मीन जायदाद मेरे नाम कर दी हो..उस पाँच रुपए के नोट की क़ीमत बहुमूल्य थी. इतनी बड़ी रक़म के लिए ख़ुद का बैंक खोला हुआ था जिसका नाम था "गुल्लक" . चवन्नी अट्ठानी एक रुपए दो रुपए कर कर के रक़म जोड़ते थे .ख़ुद के बैंक में चार आना आठ आना की बचत की जमा भी बड़ी मन को भाती थी. उँगलियों पे गिनना और बार बार गिन के ख़ुशी मनाना जमाराशि पर एक  अधभूत एहसास. गुल्लक को हम और गुल्लक हमको निहारती रोज़ाना, आँखों आँखों में हम दोनों एक दूसरे को देख देख ख़ुश होते रहते. कुछ भी ख़रीदने की सोचते तो बैंक बेलेंस अर्थात गुल्लक याद आती. फिर धीरे धीरे हम बड़े हो गए और गुल्लक की जगह ए॰टी॰एम॰ ने ली और वो भी ऐसी सुविधा जो जेब में लेके घूमते रहते हैं और ख़ुद के बैंक की जगह सामाजिक,सरकारी, और सार्वज