ख़ुद पे " धूल " जमी थी बहुत ... झाड़ा तो कुछ रिश्ते मिले ... पुरानी हँसी कुछ क़िस्से और गिले ... कुछ अधूरे एहसास ... कुछ अधूरी बातें जो बीच में ही रह गयी पर थी बहुत ख़ास ... ख़ुद को झाड़ लेना चाहिए वक़्त रहते " वरना "... " धूल " कभी कभी " शूल " की तरह चुभती रहती है !!!