शहर की हवा कुछ नासाज़ लगती है
मौसम का मूड और तबियत आज फिर ख़राब लगती है
अजीब ही किरदार है पल में शोला पल में शबनम
कभी बहुत हँस हँस के बात करता है तो बिजलियाँ चमकती हैं
तो कभी सीधे मुँह जवाब तक नहीं देता
और महीनो मिलता तक नहीं
बादलों के साथ दूर दूर दूर कभी क्रीड़ा करता हुआ दिख जाता है
आवाज़ लगाता हूँ तो अनसुना करके और दूर चला जाता है
इसको मनाने के तरीके ढूंढ़ता हूँ पर वो अपनी ही धुन में रहता है
जब मन करता है तभी आता है और जाता है
मौसम भी अजीब किरदार है। ....
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