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 Short Story 


"क़िस्सा बारहवीं कक्षा का " 


पी. टी. आई. साहेब स्कूल के सबसे खड़ूस, ख़तरनाक और निर्दायी। उनके नाम से पतलून गीली और गला सूख जाता। जिस कक्षा में वो घुसते उस कक्षा में दंगल होता क्यूँकि वो विद्यार्थीयों को ऐसे पीटते जैसे दूसरे के खेत में किसी ने अपना बछड़ा छोड़ दिया हो और उस खेत का मालिक आ गया लठ लेकर बिना सोचे समझे सूते जाओ। हर विद्यार्थी का हाथ पैर काँपने लगता उनको आता देख या उनके बारे में कोई बात भी कर ले। जी हाँ! मैं हूँ वो जिसने उनसे पंगा लिया! मैं हूँ वो फ़ौजी अपने स्कूल के विद्यार्थी संग का जाँबाज़ सैनिक जिसको हौसला और भरोशा था कि वो इस शोषण भरे काल का अंत करेगा।  
सरकारी स्कूल में पढ़ने का सबसे बड़ा नुक़सान सिर्फ़ लड़के और लड़कियों का स्कूल उसके बग़ल में केवल बारह फ़ीट की दीवार।
पी. टी. आई. साहेब को जिस कक्षा के बच्चों की ज़्यादा शिकायतें आतीं वो उन विद्यार्थियों को नहीं मारते जो बदमाशी करते बल्कि पूरी कक्षा को प्रार्थना मैदान में प्रार्थना के बाद सुबह-सुबह मुर्ग़ा बना कर उसके बाद पीछवाड़े पे लात मारते और बोलते दुबारा मुर्ग़ा बनो। लड़कियाँ अपने स्कूल के पहले माहले से हमको पिटता देखती। सोचों कितना ज़लील करते पी. टी. आई. साहेब। उनको भी अच्छे से पता था कि लड़कियाँ देख रहीं हैं तो और मारते। धूप में मुर्ग़ा बना देते। किस मुँह से अपना मुँह उठा कर लड़कियों की तरफ़ कोई देखें। इज़्ज़त, मान, सम्मान कुछ बचा ही नहीं था सब पी. टी. आई. साहेब ने लूट लिया था सारेआम। 

मैंने अपना नाम तो बताया ही नहीं छोड़ो क्या बताऊँ इतनी ज़लालत झेलने के बाद क्या कोई अपना नाम बताए। कौन सा कोई प्रतिस्पर्धा में अव्वल आने का पुरस्कार जीता है। अरे! मत जानो मेरा नाम। अरे! मान जाओ। अच्छा ठीक है बता रहा हूँ। मेरा नाम आयुशमान है। ग्यारहवी कक्षा पास करने के बाद मेरा दाख़िला इस स्कूल में हुआ। पहले दिन जब कक्षा में पहुँचा तो हाजरी के वक़्त कक्षा में पूरे उन्निस बच्चे। सबको क्लास टीचर ने रोल नम्बर से पुकारा और सब ने अपनी उपस्थिति बताई। सबसे आख़िरी रोल नम्बर मेरा था। और जैसे ही ये हाजरी की सभा वाला पहला पिरीयड ख़त्म हुआ मेरे अलावा कोई भी बच्चा कक्षा में नहीं रुका सब एक-एक करके ग़ायब। मैं पहले दिन सोचता रहा सब इधर उधर कहाँ चले गए। स्कूल में कुछ हो रहा है क्या जो मुझे पता नहीं है। और दूसरे पिरीयड में, तीसरे पिरीयड में, चौथे पिरीयड में और सबसे आख़िरी पिरीयड में भी कोई नहीं आया। बच्चे छोड़ो टीचर्ज़ तक नहीं आए। मैं हैरान भी था और परेशान भी कि कहाँ हैं सब कोई आ ही नहीं रहा है। सुबह आठ बजे से दोपहर के एक बजे तक मैं बैठा रहा। लेकिन सिर्फ़ पहले पिरीयड के बाद किसी का कोई अता पता ना था।  दूसरे दिन भी वही हुआ हाजरी लगी और फिर एक-एक करके सबसे छू मंतर। मैं फिर वैसे ही अकेले बैठा रहा दोपहर तलक। घंटी बजी स्कूल ख़त्म हुआ तो मैंने अपना बैग उठाया और चल दिया। स्कूल के कोने-कोने पे नज़र मारता हुआ निकल रहा था कि कहीं कोई कक्षा का सहपाठी मिल जाए या दिख जाए लेकिन कोई नामो-निशान नहीं। ऐसा होते होते छः दिन बीत गए और सातवें दिन एक बच्चा बोला तू क्या करता है जब सब चले जाते हैं तो मैंने उसको बताया की पिछले छः दिनों में मैं क्या कर रहा हूँ। वो हँसने लगा और बोला तू बावड़ा है क्या बे। भाई सब अपने-अपने अड्डे पे चले जाते हैं कोई नहीं होता स्कूल में। तू भी हाजरी लगवा और निकल जाया कर कहीं। मैंने बोला मैं बहुत दूर से आता हूँ और कहाँ निकल जाऊँ। स्कूल में तो पढ़ने आता हूँ। वो बोला कोई टीचर आता है मैंने कहाँ सिर्फ़ हाजरी वाले सर और कोई नहीं। वो बोला सुन आज साथ चल मेरे हम लोग मार्केट में अड्डा है वहीं बैठते हैं स्कूल ख़त्म होने तक उसके बाद अपने-अपने घर। यहाँ स्कूल में बैठ कर कुछ ना पढ़ेगा समझा तू। मैंने भी हाँ में हाँ मिला दी। हाजरी लगी बैग उठाया पीछे-पीछे चल दिया। स्कूल के पिछले हिस्से से पेड़ का सहारा लेकर सब बच्चे बारह फ़ीट की दीवार फाँद रहे थे और मैं सबसे पीछे। मैंने जैसे तैसे करके आधे हिस्से तक ख़ुद को पहुँचाया और ऊपर दीवार पर लटके मेरे सहपाठी को मुझे हाथ देकर ऊपर खिंचना था कि वो तुरंत दूसरी तरफ़ कूद गया। मुझे पहले समझ नहीं आया कि उसने ऐसे क्यूँ किया और मैं ऊपर चढ़ने की मशक़्क़त करने में लगा रहा और कुछ सेकंड में ही किसी ने मेरी एक टाँग लपक ली जैसे किसी फंदे में फँसी हो। नीचे अपने पैर की तरफ़ देखा तो पी. टी. आई. साहेब। उनके क़िस्से स्कूल के दूसरी कक्षा के बच्चों से सुने थे और मेरी कक्षा वाले भी आपस में सुबह-सुबह बात करते तो उससे इतना पता लग गया था कि कोई है ऐसा जिससे डर कर और दूरी बना कर रहना है लेकिन पहली बार भागने की कोशिश में उन्होंने ही धर लिया वो भी रंगे हाथ। पूछा हाँ किधर जा रहा है ऊपर चढ़ कर। मैंने  बोला गुरु जी मुत्तन जाऊँ हूँ। गुर्राती आवाज़ में बोले ससुरे ऊपर चढ़ के पूरे गाँव ने डुबोयोगा। नीचे उतर। नीचे उतरते ही तन-मन-धन से दे-दना-दन-दन इतना मारा की पूरा शरीर सुन। फिर बोले कौन ही कक्षा है मैंने कहा सर "बारहवी सी"। मेरे हाथ मरोड़े और सीधा क्लास में। बोले यही हैं ना तेरी क्लास मैंने कहा हाँ जी। बोले बाक़ी कहाँ हैं मैंने कहा पता नहीं। ग़ुस्से से देखा और बोले पता नहीं फिर क्लास रूम के बेंच पे लिटा-लिटा के अनगिनत थप्पड़ रसीद दिए। फिर मेरा कान ऐंठा और स्कूल के मैदान में ले जा कर मुर्ग़ा बना दिया और बोले जब तक बताएगा नहीं तब तक तू मुर्ग़ा बना रहेगा। मैंने शुरू के कुछ मिनट अपनी क्लास के बच्चों का साथ दिया पूरे जज़्बे के साथ और मन में ठाना कि इस तानाशाह के आगे मैं नहीं झुकूँगा। फ़ौजी हूँ मैं लड़ूँगा शोषण के विरुद्ध। बच्चें आते जाते देखते हुए जा रहे थे। हँस भी रहे थे क्यूँकि पूरे मैदान में मैं अकेला इस तरह के आसन में था। इसके ऊपर बग़ल के स्कूल की लड़कियाँ भी देख-देख कर हँस रहीं थी जो मुझसे सहन नहीं हो रहा था। एक दो बार मैंने इधर उधर खड़े हो कर देखा लेकिन पी. टी. आई. साहेब कहीं दिख नहीं रहे थे तो थोड़ा आराम भी किया लेकिन मुझे क्या पता वो जासूस भी हैं किसी एक कोने से किसी क्लास रूम से उनका पूरा ध्यान मुझपे ही था जिससे मैं अनजान। अचानक ही उनके आने से सन्नाटा होता या कोलाहल मचता। मैं तुरंत समझ गया आस पास हीं हैं और मैंने फिर से आसन मैं ख़ुद को ढाल लिया मतलब मुर्ग़ा बन गया। वो आए और पीछे से मेरे कुल्लेह पे ज़ोर की लात मारी। मैं उड़ता हुआ मुँह के बल गिरा। बोले अपने आप को ज़्यादा चालाक समझता है इतनी देर से ऐसे ही इधर उधर देख रहा था जैसे ही मुझे देखा फिर से मुर्ग़ा बन गया। तुझे तो आज मैं नानी याद दिला दूँगा। चल मैदान के बीस चक्कर लगा। मैंने बोला सर बीस ये कहते ही कान के नीचे झन्नाटेदार थप्पड़। मैंने तुरंत बोला सर छः दिन से मैं अकेले क्लास में बैठा रहता था सब हाजरी लगने के बाद भाग जाते हैं। और कोई टीचर भी नहीं आता। मेरा भागने का आज पहला दिन था और आपने पकड़ लिया। बाक़ी क्लास के बच्चे कहाँ जाते हैं वो मुझे नहीं पता। ये कह कर मैं रोने लगा। हाँ! मैं रोने लगा वरना उनको लगता मैं कोई कहानी बना रहा हूँ। बोले अच्छा ठीक है तुम क्लास में जाओ। मैं चैक करता हूँ कौन-कौन से टीचर्ज़ की डूटी है तुम सबको पढ़ाने की। मैं क्लास में आ कर बैठा और पीछे से पी. टी. आई. साहेब एक टीचर के साथ आए तमतमाते हुए। बोले सर मैं रोज़ आता हूँ कोई होता ही नहीं। पी. टी. आई. साहेब बोले ये तो रोज़ यहाँ होता है इसने ही बताया कोई नहीं आता। आप कैसे कह रहो हो ये देखो सामने बैठा है। अभी भी आप यहाँ नहीं थे तो टीचर चुप लेकिन मुझे घूर रहे थे। पी. टी. आई. साहेब गए और टीचर बोला तूने शिकायत की मेरी। मैंने कहा नहीं सर वो बोले टीचर कहा है मैंने बोला कोई नहीं आता है। टीचर और चिढ़ गए उन्होंने अंड शंड पढ़ाया जो पल्ले ही नहीं पढ़ा फिर पिरीयड ख़त्म हुआ तो निकल गए घूरते हुए। उस दिन सारे टीचर एक-एक करके आए और आते हुए घूरते और जाते हुए घूरते। मैं डर रहा था कि ये सब टीचर बाद में मुझे बहुत परेशान करेंगे। सबको ये लग रहा है मैने शिकायत की है। लेकिन इनको कैसे बताऊँ ख़ुद को मरने से बचाया आज।  

अगली सुबह प्रार्थना के बाद।

पी. टी. आई. ने कहा "बारहवी-सी" वाले सारे बच्चे रुकेंगे और बाक़ी सब जाओ अपनी अपनी क्लास में। इतना सुनते ही मेरी इंद्रियाँ जाग गयीं कि आज ये इन सबको क़तार में सावधान विश्राम करवाएँगे। इस कक्षा का मॉनिटर कौन है। कक्षा का मॉनिटर परवीन बोला सर मैं हूँ। अच्छा तो आगे आ जाओ मॉनिटर साहेब पीछे कहाँ खड़े हो। सबका रोल नम्बर पूछा और नाम। फिर सबको रोल नम्बर के हिसाब से क़तार में खड़े होने को कहा। सबसे आख़िरी में मैं। क्लास के मॉनिटर से पूछा क्लास कैसी चल रही है बोर्ड की परीक्षा है पता है ना। पढ़ायी कैसी हो रही है टीचर्ज़ ठीक से पढ़ा रहे हैं ना ? मॉनिटर बोला हाँ सर सब बहुत अच्छे से पढ़ा रहे हैं। बोले रोज़ सारे पिरीयड लग रहें हैं ना। कुछ कमी है किसी टीचर के पढ़ाने में तो बताओ सब। मॉनिटर ने बोला नहीं सर अच्छे से पढ़ा रहे हैं सब टीचर्ज़ रोज़ सब क्लैसेज़ लगती हैं। इतना सुनने के बाद कहा उन्निस नम्बर आगे आ। मैं काँपने लगा की अब मुझे क्यूँ बुला रहे हैं। बोले कल किस-किस विषय का पिरीयड लगा था। मैंने सबके नाम बताए बोले ये सब तेरे साथ ही थे। मैं चुप इसपे बोले बता या फिर मुर्ग़ा बनाऊँ शाम तक। सर आपको तो पता है मुझसे क्यूँ बुलवा रहे हो। तू बोलेगा की नहीं जल्दी बोल। सर इनमें से कोई भी नहीं था। पी. टी. आई. साहेब ने कहा कितने दिनों से ये सब स्कूल से हाजरी लगते ही भाग जाते हैं। मैंने कहा पहले दिन से जब से स्कूल शुरू हुआ। इतना सुनते ही पूरी क्लास के बच्चों के गुर्राए और खिस्याये चेहरे मेरे चेहरे पर। मॉनिटर को कस के गाल पे तमाचा। सबको मुर्ग़ा बना दिया उनके साथ मुझे भी। मैंने कहा सर मैं तो कल भी बना था फिर से क्यूँ। बोले चुपचाप बन जा वरना दूसरे तरीक़े हैं मेरे पास। मैं और पूरी क्लास मुर्ग़ा बनी हुई थी। पूरा स्कूल हमें देख रहा था और लड़कियों की भीड़ भी। एक घंटे बाद पी. टी. आई. को हम पर तरस आया और बोले चलो क्लास में जाओ। टीचर भेज रहा हूँ अगली बार ऐसा हुआ तो नाम काट दूँगा सबके। कहीं भी दाख़िला नहीं मिलेगा ऐसा चरित्र प्रमाण पत्र बनाऊँगा समझे। क्लास में जाते हुए सब गर्दन नीचे करके चले जा रहे थे। अंदर घुसते ही सबकी नज़रें ऊपर और मुझ पर। मैं समझ गया की सब मिल कर मारेंगे। एक-एक करके सबने ऊँगली दिखायी की स्कूल ख़त्म होने के बाद तेरी ख़ैर नहीं। लंच ब्रेक हुआ और मैं खाना खा रहा था कैंटीन के एक कोने में, वहीं क्लास का एक बच्चा आया जिसने मुझे भागने की सलाह दी। उसने बोला अभी चुपचाप निकल जा तुरंत वरना तुझे बहुत मारेंगे सब स्कूल ख़त्म होने के बाद। स्कूल का गेट देख खुला है लंच ब्रेक तक। स्कूल ख़त्म हुआ कि तेरा क़िस्सा भी ख़त्म। तब पी. टी. आई. नहीं होगा बचाने को। मैंने उसकी सलाह को संजीदगी से लिया और तुरंत खाना छोड़ क्लास में गया बैग उठाया चुपके से और खिसक लिया स्कूल से बाहर चौक़ीदार की नज़रों से बच कर। घर आया और अगले दो हफ़्तों तक स्कूल नहीं गया। और जिस दिन गया बस से उतरते ही क्लास के बच्चों ने पकड़ लिया और बोला हाँ बे तुझे क्या लगा तू कुछ दिन आएगा नहीं तो हम भूल जाएँगे। मैंने कहा भाई मैं भी भाग रहा था पी. टी. आई. ने पकड़ लिया और सीधा क्लास में ले गया अब बताओ क्या करता उसको तो पता था कि कोई नहीं था क्लास। उसने जानबूझ के मुझसे बुलवाया ताकि तुम सबसे मेरा बैर हो जाए। उन्होंने चाणक्य वाला दिमाग़ लगाया। मैं क्यूँ अपने ही भाइयों के ख़िलाफ़ बोलूँगा। मुझे उसने जिस दिन पकड़ा उस दिन मारा और मुर्ग़ा भी बनाया अगले दिन भी मुर्ग़ा बनाया। मैंने तो दो दिन सज़ा भुक्ति। अब भी अगर मैं ग़लत हूँ तो तुम सब भी मार लो भाई। मैं और क्या कहूँ इससे ज़्यादा। सब पिघल गए और बोले चल पूरी छोले  खाते हैं। एक बोला पी. टी. आई. है तो जल्लाद। 
   




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