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"गर्मी"


Short Story

"गर्मी"



  गर्मी इश्क़ की छोटी सी कहानी मौसम से ,समझो तो जानू की क्या समझे और नहीं समझे तो वो तो आम बात ही है जो सबको समझ नहीं आयी। हाय तौबा मची पड़ी है चारों तरफ हाय-हाय गर्मी, हाय-हाय गर्मी और गर्मी बड़ी ही नरमी से दबे पाँव खड़ी  है स्थिर और देख रही है सबको की मैंने क्या किया तुमने ही इतने मौसम मांगे और सबका मज़ा लेते हुए आ रहे हो सदियों से आज मैं थोड़ा  सा ज्यादा स्नेह दिखा रही हूँ तो कोस रहे हो आखिर क्यों ??? ये स्नेह भी तो आप सबने ही बढ़ाया है। खुद को जिम्मेदार मानना तो है ही नहीं की हम गलत कैसे हो सकते हैं इंसान के रूप में पैदा हुए हैं सबसे अव्वल हैं तो कुछ गलत या गलती कैसे करेंगे। सुन्दर शरीर , मनमोहक रूप , कद काठी , नैन नक्श विधाता से वरदान में पाया है दिमाग जो सोच और समझ सकता है फिर कैसे हम बेवकूफी करेंगे। ...
वन काट कर खेत बनाये और बनाई  इमारते, पहाड़ काट कर रास्ते, समंदर को खोज-खोज कर खोद-खोद खनिज किया उपयोग।  धरा को खोखला कर-कर के अम्बर को छूने मानव चला, प्रकृति की आकृति बिगाड़ कर स्वाभिमान की दौड़ जीतने मानव चला। .


न रहे अब पहले से दिन, 
 न रहीं रातें, न रहीं बरसातें, 
 न रहे मेघा।।
घेर कर खड़ा विनाश 
"बोले " 
अब नहीं लूंगा अवकाश।।
देर हुई के तुम मनुष्य समझ पाते काश  .... 
अब हुआ अंधियार ...  
सबका किस्सा हुआ तमाम......






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