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Short Story 


"वशीकरण" 


इंतज़ार करते-करते विभा का आत्म विभोर हो जाता। सहर से संध्या और रात्रि कैसे, कब, क्यूँ बीत जाती ध्यान ही नहीं रहता। मोक्ष, मुक्ति, मोह और आत्म निरीक्षण सब के सब सिर्फ़ एक ही नाम का जाप विभा। विभा का अर्थ किरण होता है और मेरी चमकती दहकती किरण का कारण भी यही थी। सुंदर, गेहुआ रंग, छोटी क़द काठी, रेशम से केसु, रूखसार पर हँसी के बुलबुले उमड़ते सदैव, नैन मृगनैनि जिनसे नज़रें मिले तो आप उन्माद में चलें जाए। अखियंन में कजरा लगाए वो ठुमक-ठुमक आती और बग़ल से गुज़रती हुई जब निकलती तो मन में मृगदंग बजने लगता, मृगतृष्णा हो जाती। जितनी दूर वो जाती साँसों में तल्ख़ी और गले में चुभन होती। जीवन जैसे आरम्भ और अंतिम छण तक पहुँच जाता उसके आगमन और पलायन से। प्रेम की परिभाषा और उसका विवरण विभा। मेरे अंतर ध्यान के मार्ग की मार्ग दर्शक, वो यात्रा जिसका कोई पड़ाव या मंज़िल ना हो। भोर होती ही उसके घर की चोखट पर मेरी नज़रें नतमस्तक होतीं, ध्यान की लग्न जागती, मन की तरंगे उज्वलित उसके दर्शन से होतीं। उसके आगे पीछे, दाएँ बाएँ, दूर क़रीब, हर स्थान पर मैं ख़ुद को पाता। मेरी आशिक़ी की इंतहा और उसके पागलपन की कोई सीमा नहीं थी अगर कहीं मैं रुकता, झुकता और थमता तो वो विभा के इशारे और नज़ारे। एक कटपुतली सा मैं और जिसकी डोर विभा के हाथ में। मेरे लिए वो मेरी सातों जनम की साथी लेकिन उसके लिए मैं सिर्फ़ एक जान पहचान वाला। बस यहीं से शुरू हुआ मेरा संघर्ष क्यूँकि मेरे जैसे ही बहुत सारे सिद्दत से इश्क़ में जीने मरने को तैयार बैठे थे उसके लिए। कमबख़्त मारो को मेरी ही प्रेम की नैय्या में बैठना है।

कक्षा दूसरी में जब वो पहली बार मेरे स्कूल में आयी उसको देखते ही देखता रह गया। अब बोलोगे इतना भी मत छोड़ो यार। कक्षा दूसरी में हज़म ना होगी ये बात। भाई माँ की क़सम सच कह रहा हूँ मानो मेरी बात को। इश्क़ की हाजरी लगा दी थी तभी उसके दिल की कक्षा में बस उसने ओक ना कही। झूट बोलूँ तो तुम्हारा मरा मुँह देखूँ। ऐसे ही समय बीतता गया साथ- साथ पढ़ते रहे और बढ़ते रहे। मैं कभी-कभी उसको मज़ाक़-मज़ाक़ में बोलता प्यार हो गया है मुझे तुमसे वो हँस के बोलती पढ़ाई करो ज़्यादा शाहरुख़ खान ना बनो "क क क क क क क किरण" ये कह कर चली जाती या दूसरों से बातें करने लगती और मैं खड़ा उसको घूरता रहता कि कैसे इसको समझाऊँ जिया जले ये दर्द और कितना पले। दौड़ भाग से भरी मेरी प्रेम कहानी मैं कभी कोई रोड़ा ना आया जब तक वो दसवीं में ना पहुँची। उम्र और क़द काठी बढ़ती हुई। अति सुंदर, अति मोहक, अति चंचल, अति अति अति बस अत थी, उसकी सुंदरता का बखान और बयान कर पाना मुश्किल ही नहीं ना मुमकिन।  स्कूल, टूइशन और मोहल्ले के बंदर छाप, छपरी, लम्बी पतलून टाइप के लोंडे आए दिन उसके आगे-पीछे गोल गोल घूमते फिरते। प्रतिस्पर्धा द्वन्द बन चुकी थी। उसको भी अच्छा लगने लगा था अचानक इतने लड़कों की तवज्जो मिल रही थी। बाली उम्र में बालिका बहक रही थी लेकिन मैं ये कैसे होने देता। प्रयास, उपवास और उपहास से थक चुका था मैं। दसवीं कक्षा पास कर चुके थे और फ़ेर्वेल फ़ंक्शन मतलब आख़िरी दिन इसके बाद सब अपने अपने मार्क्स के हिसाब से कोर्स लेंगे और स्कूल चुनेंगे क्यूँकि ये स्कूल सिर्फ़ दसवीं कक्षा तक ही था। मैने भी निर्णय ले लिया था कि आज इसको बोल दूँगा। मोहब्बत की जलती लौ आज जलेगी या बुझेगी देखा जाएगा लेकिन मैं आज उसका हाथ पकड़ कर बोल दूँगा की वी वी वी वी वी विभा मैं तेरा "श श श श श श शाहरुख़ खान"। एक तो भाई साहेब शाहरुख़ खान ने स्तर इतना ऊँचा सेट कर दिया है अपने जैसे लोंडे वहाँ कैसे पहुँचें। लड़की को लड़का चाहिए दोनों बाँह खोल कर बोले तुझे देखा तो ये जाना सनम। साला यहाँ लड़की सुनने को राज़ी नहीं बंदा बोले तो क्या घंटाघर। ख़ैर अब अपनी कुंठा खान साहेब पर क्या ही निकाले वो तो अपना काम कर रहे हैं। 
हौसला बुलंद लिए मैं पहुँचा ठीक उसके सामने जैसे ही उसको बोलने के लिए होंठ खोले की एक लंगूर ने बीच में कूदी मारी और बोला विभा एक मिनट इधर आ कुछ बात करनी है। और उसने उसको प्रेम प्रस्ताव पेश कर दिया मैं तो दंग रह गया और भाई साहेब मेरी आँखें चौड़ी, मुँह खुला का खुला, दिल की धड़कन रुक गयी, हवा टाइट की ये कब और कैसे हुआ। इनका कुछ चल रहा था क्या और जो मैं चलाने की कोशिश कर रहा था वो व्यर्थ या कभी था ही नहीं। उसने उसको बोला सोच कर बताऊँगी क्यूँ सोचना सीधा मना कर यार तेरा प्यार ये रहा मैं। उस दिन मेरा दिल चूर-चूर हुआ और पसीजा भी डर से संदेह से भरे वो पल मैने कैसे बिताए क्या ही कहूँ। सोच कर बताऊँगी मतलब क्यूँ। मैं हूँ तो बचपन से पतलून बैग पकड़े-पकड़े आगे पीछे नागिन नृत्य करता दिख क्यूँ नहीं रहा हूँ । उसके वश में मेरे दिन, रैन, दोपहर, शामें। ख़्वाब, ख़याल, बेक़सी, बेबसी, बेकद्री, बे-ख़याली सब उसकी देन और इन सबसे उसका कोई लेना देना नहीं दूर दूर तक। ये एक तरह का वशीकरण था मुझ पर जिसका इलाज मुझे पता तक नहीं था। 
ज़िक्र होता तेरा मेरी हर बात में ।
रहती हर वक़्त तू मेरे ही साथ में।  
वक़्त बे-वक़्त जो सताते हैं वो सारे ख़्वाब दिन रात में। 
उनसे पूछ कभी पास बैठ कर मेरी जगह मेरे हालात में। 
कभी बिगड़ती है कभी सँवरतीं है क़िस्मत ख़यालात में।
वाकिया सा बन गया हूँ मैं ख़ुद के ही सवालात में ।
ज़िक्र होता तेरा मेरी हर बात में। 
रहती हर वक़्त तू मेरे ही साथ में ।।।

किस तरह बीते वो दिन कैसे बताऊँ मंदिर गया, जिरजाघर गया, गुरुद्वारे गया, मज़ार पर गया सिर्फ़ यही इल्तज़ा और दरख्वास्त की ऊपर वाले इस नीचे वाले की सुन ले और विभा उस लंगूर को हाँ ना करे वरना मेरा भरोसा उठ जाएगा तुझ पर से और मोहब्बत पर से भी। कई दिनों से खाना पीना जब नहीं ठीक से खा रहा था तो माँ एक मोलवी साहेब के पास ले गयी झाड़ फूँक कराने की कहीं बच्चे लो नज़र ना लग गयी हो इसलिए खाना पीना छोड़ दिया अब माँ को कौन बताए मियाँ दिल इश्क़ में सितमगर बना पड़ा है। मोलवी साहेब ने देखा और झाड़ फूँक तो की और जाते जाते माँ को बोला दीदी आप रुको और बेटा तुम जाओ। माँ अंदर से निकली और हाथ में बाटा की चमड़े वाली चप्पल से जो मेरी सरे बाज़ार कुटाई और ठुकाई हुई बस दिल ही जानता है। इज़्ज़त अलग उतारी माँ ने चिल्ला चिल्ला कर हरामज़ादे इन्नी सी उम्र ना है तेरी और तू आशिक़ी पेल रहा है। पढ़ायी करने को कहो तो मौत आती है तुझे लोंडिया के चक्कर में सूख कर काटा हो गया। चव्वानी भर का लोंडा चला है कैफ़ू बन ने। मारा तो मारा ख़ुद के बेटे का माँ ने पूरे मोहल्ले में जलूस अलग से निकाला। चोट खाए हुए आशिक़ को अलग से चोट दे डाली माँ ने। तड़पता दिल और पिटने के बाद अकड़ा हुआ जिस्म लेके रात भर आह करता रहा मैं। हर करवट पर सितमग़र आह निकल रही थी बाटा की चप्पल के निशानो से।  माँ ने मेरे बाप का इतने बरसों का ग़ुस्सा उनके बेटे पर उतार डाला सूत समेत। पापा रात को जब घर आए माँ ने बताया सब कुछ, पापा मेरे कमरे में आए और मेरा सूजा शरीर देख कर उनकी सांसें सूज गयी थी जैसे अगला उनका नम्बर था। दाल में कुछ काला था। पापा भी कहीं आशिक़ी तो नहीं पेल रहे थे बाहर ना-ना ख़ुद के बाप पर ऐसी तोहमत। 

विभा के कानो तक भी ये बात पहुँची और उसने भी बोला मजनू बनेगा तो पिटेगा ही। उसको कितनी बार तो मना कर दिया है लेकिन वीर फिर भी नहीं मानता। हर जगह नाचता फिरता है मेरे पीछे पीछे। मैं क्या करूँ। उसकी ग़लती है मैने थोड़ी बोला खाना पीना छोड़ दे। उसकी सहेली बोली तूने वशीकरण कर दिया उसपे। और उसमें ख़राबी क्या है। सुंदर, शरीफ़, पढ़ने में भी ठीक है। लड़का भी अच्छा है। विभा बोली मुझे जैसा चाहिए वैसा नहीं है। बस यहीं बात आ कर अटक जाती बार-बार। विभा ने उस लंगूर छीछोरे लोंडे को अंश कालिक बोय फ़्रेंड बना लिया। दोनों ने एक ही स्कूल से ग्यारहवी और बारहवीं की। मैने दूसरे स्कूल से की। लेकिन इश्क़ की लौ को भुजने ना दिया। रोज़ाना उसके घर और टूइशन सेंटर जो की हम तीनों का एक ही था मुलाक़ात लाज़मी बना दी थी मैने। विभा बीच बीच में मुझे देखती नज़रें बचा कर की मैं कहाँ और किसको देख रहा हूँ या बात कर रहा हूँ। एक दोस्त ने बोला जिम जा बॉडी बना उस से भी लड़कियाँ इम्प्रेस होती हैं। जिम में मसल के मसले कर डाले। गोल गोल कर डाला सब। कसिला बदन और नोकिले नैन नक़्श कर दिए दो साल में जिम में जा जा कर। कॉलेज अड्मिशन के लिए धक्के शुरू हुए तो विभा मैने एक ही कॉलेज में अड्मिशन लिया और उसके अंश कालिक बोय फ़्रेंड की पर्सेंटिज कम थी तो उसको दूसरे किसी कॉलेज में अड्मिशन मिला लेकिन ससुर यहीं मँडराता रहता दिनभर। बॉडी जिसके लिए बनाई उसका ध्यान अब मेरी तरफ़ आकर्षित हो रहा था। दोस्त ने बोला बेटे इसे कहते हैं वशीकरण। मैने बोला चूतिया है क्या ये कैसा वशीकरण। उसने बोला अच्छी सूरत पर लोग मारते हैं लड़की या लड़का उसी तरह अच्छे शरीर पर भी लोग मारते होंगे गोचू।  
थोड़ी बहुत बातचीत तो हमेशा से थी लेकिन थोड़ी से ज़्यादा होने लगी। कैंटीन में मिल जाना, कॉलेज के ग्राउंड में मिल जाना, इसी तरह मैं आज भी उसके आगे पीछे ही घूम रहा था। मेरा दिल आज भी सम्मोहित और उसके वश में था। जिसकी ख़बर उसको भलीभाँति थी जिसका वो लुत्फ़ और फ़ायदा सिर्फ़ मुझे तड़पा कर लेती। एक विज्ञापन देखा किसी को भी वश में करने के नुस्ख़े। दोस्त मुझे तुरंत लेके गया और मैं भी प्रेम में अंधा चला भी गया। उसने बोला ये करामती काजल आँखों में लगाओ और ये मंतर जिस भी लड़की को वश में करना हो उसको देख कर पढ़ देना। एक सप्ताह में तुम्हारे वश में होगी। काजल लगाया तैयार हुआ और कॉलेज की कैंटीन में सक्रिय तैनात मेरा दोस्त विपुल उसने इशारा किया विभा आ रही है। वो आयी मैने उसकी आँखों में देखा और मन में मंतर पढ़ दिया। वो बैठी और बोली घूरते ही रहोगे गुरु घंटाल या कुछ खिलाओगे। मैने बोला हाँ हाँ क्यूँ नहीं बोलो क्या खाओगी। मैने उसको देखता रहा और मंतर पढ़ता रहा। उसने मेरी आँखों में लगे काजल पर ध्यान ही नहीं दिया। एक सप्ताह बीत गया मैं रोज़ दिन गिनता रहा और उससे मिलता भी रहा लेकिन उसका बर्ताव बिलकुल नहीं बदला मतलब प्रेमिका जैसा तो बिलकुल नहीं उलटा सातवें दिन मेरी आँखों में सूजन आ गयी ख़राब क्वालिटी का काजल लगाने से। डॉक्टर के पास जाना पड़ा और पाँच दिन तक आँख पर काला चश्मा लगाने को बोला ताकि किसी और की आँखों में इन्फ़ेक्शन ना हो। ये कैसी वशीकरण की विधि थी भगवान जाने ख़ामाखा अंधा और हो जाता है।  विपुल हमेशा मेरी मदद ही करना चाहता था इसलिए वो नए नए तरीक़े और नुस्ख़े बताता या खोजता कि कैसे विभा वीर को मिल जाए। विपुल भी बचपन से ही साथ पढ़ता था और मेरे पीछे वाली गली में ही रहता था। एक मोलवी के पास भी लेके गया की ऐसे ऐसे है लेकिन लड़की मान नहीं रही कुछ कर सकते हो आप उन्होंने बोला लड़के को लेके आओ। मैने फिर गया प्यार में अंधा होने से तो बचा लेकिन अंधा तो पहले से ही था बस दिख रहा था। लेकिन जो दिखना चाहिए वो नहीं और वो भी सच्चाई जिससे कोसों दूर टहल रहा था मैं। उन्होंने एक काग़ज़ की पुडिया में क्रॉस बनाए कुछ पढ़ा और बोला ये लड़की को पानी में मिला कर पिला देना। मैने बोला ये कैसे कर पाउँगा तो बोले कितना बड़ा गधा है लड़के। घर से पानी की बॉटल में मिला कर लेके जाना पुडिया निकल कर फेंक देना। मंतर काम करेगा तभी भी। मैने बोला ओह ऐसा ठीक है ये तो कर सकते हैं बहुत आसान है। मोलवी साहेब को पैसे दिए और अगले दिन कॉलेज ग्राउंड पर वो मिली। आते ही पानी की बॉटल उठाई सीधा मुँह लगाया और पूरा पानी पी गयी। मैं ख़ुश उसको देख रहा था वो बोली तू बचपन से मेरे सपने देखता है और अब भी। तुझे पता है तू सिर्फ़ मेरा दोस्त है रे। प्यार वाला फ़ीलिंग तेरे लिए नहीं आता। मैने बोला प्रयास पर रोक है क्या। तू मत कर मैने कब बोला ज़बरन इश्क़ कर या मेरी गर्ल फ़्रेंड बन जा। कभी बोला आज तक बोल, या तुझसे कोई बदसलूकी की हो। उसने देखा मेरी तरफ़ और काँधे पर हाथ कर बोला इसलिए तेरे पास आती हूँ समझा डेड़  सियाना होता ना बेटे पास भटकने भी नहीं देती और बैठना तो दूर की बात है। चल अब घर चलेगा था ये उसने पहली बार बोला मुझे कॉलेज के कितने महीने बीतने के बाद। मैं और वो एक ही बस में साथ साथ बैठे हैं। थोड़ी दूरी पर विपुल बकलोल वहाँ से इशारे किए जा रहा है शुक्र है विभा ने नहीं देखा वरना दोनों का जलूस निकाल देती। उतरते ही विपुल आया मेरे पास बोला भाई मोलवी जी की पुडिया काम कर गयी। मैने बोला तू अपने मुँह ही चिमनी और आँखों के इशारे बंद रख। साले बेवक़ूफ़ों के जैसे इशारे किया जा रहा था वो देख लेती ना पुडिया गंडिया में दाल देती तेरी भी और मेरी भी। 
ऐसे ही काफ़ी दिन बीत गए लेकिन कुछ ऐसा ख़ास परिवर्तन नहीं दिखा तो मोलवी साहेब को कहा ऐसा ऐसा हुआ लेकिन कोई ख़ास बदलाव नहीं। फिर वो बोले एक अचूक इलाज है जिसका वार आज तक ख़ाली नहीं गया लेकिन महँगा है बहुत।  विपुल ने पूछा कितना महँगा मोलवी जी बोले पाँच हज़ार। मैं उचक पड़ा और बोला मोलवी साहेब इतने पैसे कहाँ से लाउँगा। इश्क़ करता हूँ डकैती थोड़ी। बोले बेटा अचूक है लेकिन। जिसको दिया उसके दिन सुधर गए और दिल मिल गए।  मैने पूछा ऐसा क्या करोगे मोलवी साहेब। बोले मैं नहीं अपने पंडित जी करेंगे शशिकांत जी। मैं और विपुल दोनों चौंक गए "हैं"। वो ऐसा क्या करेंगे जो इतना पैसा लगेगा तब उन्होंने बोला वो शमशान घाट में पाँच रात तप जाप करेंगे और मुर्दों की जली अस्तियों की राख की पोटली बना कर देंगे जिसको तुमने उनके कहे अनुसार रखना होगा। रास्ते में बात करते करते आए की इतने पैसे कैसे आएँगे भाई ज़्यादा से ज़्यादा पाँच सौ तक इधर उधर से कर सकता हूँ । विपुल बोला कुछ तो करना होगा। विभा को उसकी क्लास एक लड़का बाइक पर लेके घूम रहा था परसों तुझे बोला नहीं क्यूँकि बुरा लगेगा। मैने उसको ग़ुस्से से देखा और बोला तुरंत बताया कर चाहे दिल जले या कुछ और समझा। हर अप्डेट चाहिए उसकी। चल अब पैसे का इंतज़ाम करते हैं तू देख तुझसे कुछ हो पाएँगे तो। मैं घर गया और मौक़ा देख कर माँ की सोने की अँगूठी चुरा ली और बेच दी सुनार को। जा कर मोलवी जी को दे दिए पैसे, उन्होंने पंडित जी से बात की अलग से कोने में जा कर वो आए और बोले पाँच दिन बाद आ कर चमत्कारी राख ले लेना मोलवी जी से और ये बात किसी को बताना नहीं वरना अपशगुन हो जाएगा जिसका ज़िम्मेदार में नहीं होऊँगा। छठे दिन विपुल मैं गए और राख ले आए उन्होंने बोला सिरहने रख कर रात में उस लड़की को सोचो की वो तुम्हारे साथ बग़ल में लेटी है। अब जवान लड़का ये सोचेगा तो क्या होगा आपको भी पता ही। उन्होंने कहा पंद्रह दिन में वो तुम्हारे वश में और ये वशीकरण की ऊँच क्रिया है जिसका विफल होना असम्भव है। पंद्रह दिन तक रोज़ उसको याद कर कर के शरीर मन थक गया उसपे वशीकरण तो ना हुआ मैं और उसकी तरफ़ झुक गया। रात में भूत प्रेत के सपने आने लगे पंद्रह दिन के गुज़रते ही। कभी कोई मरता दिखे कभी कोई। एक दिन तो विपुल ने फाँसी खा ली ऐसा भी देख लिया। विभा का विवाह हो गया ये भी दिख गया। मैं बौखलाया गया मोलवी जी के पास विपुल को लेके की ऐसे ऐसे हो रहा है ये क्या अचूक बान दिया अपने और पंडित जी ने मेरा सोना दुशवार हो गया। रात भर डर के मारे सो नहीं पाता हूँ।  इसपे भी उन्होंने मुझे ही दोष दे दिया की सिरहने के किस तरफ़ रखा मैने बोला दाएँ बोले लो अब कर लो बात जब की तुम्हें बाएँ तरफ़ रखने को कहा था। तुमने तप जप सब शून्य कर दिया। आज कल के लड़कों की यही परेशानी है किसी भी बात को ध्यान से नहीं सुनते। फिर बोलते अच्छा सुनो एक और नुस्ख़ा है। नया नया इजात किया है कुछ लोगों को ही बताया है बहुत ख़ास लोगों के लिए ही है। तुम दोनों भी अपने ख़ास लोगों में से ही हो बोलो तो बताऊँ वशीकरण की ये नई तकनीक। मैने विपुल को देखा और बोला मोवली साहेब कल आते हैं। वहाँ से निकला और ख़ुद को दस गालियाँ दी। किसी को ज़बरदस्ती प्यार या अपना कभी कोई नहीं बना सकता।   
वश या वशीकरण का समीकरण केवल इतना है की प्रेम बाध्य नहीं हो सकता किसी भी परिस्तिथि में।  





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