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 Short Story 

"रेल में प्यार के खेल में" 


दिल्ली से निकली रेल और मैं नीचे वाली बर्थ पर लाला लखेंदर के जैसे पसर कर लेट गया थोड़ी देर बाद एक सुंदर सुंदरी नाक में चाँदी की मुंदरी पहने फटी जीन और शॉट टॉप गले में लम्बी सी चेन जिसमें आधा टूटा हुआ दिल नुमा आकार का लॉकट। सामने मेरे पेरों के खड़ी, एक निगाह मुझे निहारा और समझ गयी कि ये ना उठेगा अपनी बर्थ से फिर मेरे सामने वाली बर्थ पर नज़र गड़ाई वहाँ भी एक अंकल जी हाथ में उर्दू का अख़बार लिए औंधे लेते पड़े थे बिलकुल मेरे जैसे ही सुस्त, पेट उनका कुर्ता अब नहीं तब फाड़ कर  चीख़ पड़े की मुझे कसरत कराओ, पजामे का नाड़ा बर्थ से लटक रहा था घड़ी के काँटे के जैसे और विनती कर रहा था कि चीचा मुझे पजामे के बाहर नहीं भीतर ।
 पुरानी दिल्ली से एक नव युवक यानी के मैं और एक पूराने चीचा यानी वो जो सामने अख़बार चाटने में लगे थे दोनों चढ़े थे। लड़की ने थोड़ी देर इधर उधर क़दमचहली की और फिर पूछा क्या आप मेरा ये बैग ऊपर रख दोगे। मैने देखा क्या, मैं तो प्रतीक्षा ही कर रहा था कि ये कब इस सहायता केंद्र से सम्पर्क करे और सहायता में बहुत घमंड होता है याद रखना जब तक मानोगे नहीं मिलेगी नहीं। लड़की का बोलने भर था चीचा का अख़बार से ध्यान हटा और मुझपे जम गया। मैने तुरंत लपक के बैग ऊपर उसकी बर्थ पर रख दिया। उसने कहा शुक्रिया और फिर बोली क्या मैं यहाँ बैठ जाऊँ अगर आपको कोई दिक़्क़त ना हो तो। मैं क्या कहता उससे पहले ही चीचा बोल पड़े यहाँ बैठ जाओ वो तो सोने वाला था आते ही बोला मुझे। मैं तो पढ़ रहा हूँ अभी देर से आँख लगती है। तुम यहाँ आराम से जब तक बैठना चाहो बैठ सकती हो लेकिन मुंदरी वाली सुंदरी ने चीचा को स्माइल दी और मेरी बर्थ पर बैठ गयी। चीचा मुँह चढ़ा कर टेड़े हो कर फिर से अख़बार की ख़बरों में मगन हो गए ऐसा मुझे लगा। 
टी टी साहेब आ चुके हैं। एक-एक करके सबकी टिकट चैक हो रही है। अभी तक मुंदरी वाली सुंदरी से कोई बातचीत नहीं हुई और लगभग एक घंटा बीत चुका था उसको आए और हमको सफ़र में मिले। उसने अपने कान में हेड्फ़ोन लगा कर ख़ुद को विलुप्त कर लिया था दीनदुनिया से। उसको कोई अता पता नहीं था की रेल किधर जा रही है बाहर का नज़ारा क्या है और बग़ल में बैठा नज़ारा कैसा है। टी टी साहेब ने आ कर उसको आवाज़ लगाई और उसने कोई जवाब नहीं दिया वो आँखें बंद किए बस अपने में हीं गुम थी। उन्होंने दो बार आवाज़ लगने के बाद उसके काँधे पे हाथ मार तब मैडम जी ने आँख खोली तो हेड्फ़ोन निकाला कानों से। सारी सारी के साथ उनकी बातचीत का आरम्भ हुआ। सुंदरी के पास कन्फ़र्म टिकट नहीं थी मैडम बिना कन्फ़र्म टिकट के चढ़ा गयी थी। टी टी साहेब ने बोला अगले प्लाट्फ़ोर्म पर उतर जाना क्यूँकि ये सीट किसी और की है। कन्फ़र्म टिकट के बिना कैसे यात्रा कर रही हो। लड़की मायूस और उदास। उसने बहुत कोशिश की लेकिन टी टी साहेब लगता है बीवी से पिट कर आए थे सुनने को तैयार ही नहीं थे चीचा भी बोल चुके थे लड़की के सपोर्ट में परंतु किंतु लेकिन का टी टी साहेब पर कुछ असर नहीं हुआ सब बे-असर। लड़की चुपचाप बर्थ पर बैठ गयी मुँह लटका कर। मैने एक शब्द नहीं कहा टी टी से मैने शुरू में ही कहा था मदद में बहुत घमंड और अकड़ होती है उसके पास जा कर विनम्रता से सहायता के लिए कहना पड़ता है और अभी तक ऐसा कुछ किसी ने सहयोग या सहायता के लिए कुछ कहा नहीं। पाँच मिनट बीत चुके थे चीचा भी खिड़की के बाहर अंधेरी रात में पटरी के बग़ल से जलती बुझती रोशनी को देख रहे थे शांत बैठे। सुंदरी के चेहरे पे गिरते आँसुओं की बूँदों के आगे में पीग़ल गया और मदद की अकड़ को किनारे किया और तुरंत पूछा मैं बात करके आता हूँ आप रोयो मत। उसने मेरी तरफ़ देखा लेकिन कुछ कहा नहीं जैसे उसको यक़ीन था कि मैं कुछ नहीं पाउँगा। मैं गया और टी टी साहेब को कोने में ले जा कर बोला मामा मामी से लड़ के आए हो क्या लड़की को रुला दिया ख़ामाखा। जी हाँ ये टी टी साहेब मेरे मामा जी हैं मैं तो चुप था की लड़की कुछ बोले मुझे तो उसको कहूँ की पैसे लगेंगे लेकिन हो जाएगा पर उसने कहने की बजाए आँसू बहा दिया जो मुझसे देखे नहीं गए लेकिन इसका मतलब ये नहीं की मैं मामा का नुक़सान कराऊँगा। मैने मामा को बोला बर्थ ख़ाली है ना। उन्होंने कहा हाँ ख़ाली है। लेकिन इसकी जगह किसी और को दूँगा कमाई करनी है बेटा है ख़ाली हाथ घर जाना अच्छा नहीं होता। मैने ग़ुस्से से देखा और बोला रुको मैं पैसे लेके आता हूँ उससे। मैं आया वापस और उसको बोला पैसे लगेंगे लेकिन उसके पास उतने पैसे नहीं थे तो मैने बाक़ी मिला कर दे दिए मामा जी और उसकी सीट कन्फ़र्म करवाई। चीचा बग़ल में बैठे-बैठे उसको टीपे जा रहे थे लेकिन ये नहीं की लड़की की कुछ मदद कर दें पैसों से।   

आख़िरकार मैने ही पूछ लिया आपका नाम क्या है वो बोली इशिता। मुझे लगा वो पूछेगी लेकिन नहीं पूछा तो मैने ही बता दिया निखिल। उसने थैंक यू पहले ही बोल दिया था तो कुछ कहने को था नहीं उसके पास। बात मुझे ही बढ़ानी थी ये मुझे भनक लग चुकी थी। लेकिन बात बढ़ाऊँ कैसे ये चीचा सोएँ तो पहले। नज़रबट्टू के जैसे नज़रें गड़ाए बैठे हैं बस मुझपे और उसपे। मैने पूछा कहाँ जा रही हो तो बोली इलाहाबाद। मैने कहा मैं भी वहीं जा रहा हूँ । चलो अच्छा है कोई तो मिला वहाँ तक का। वो हँसी और फिर से फ़ोन में लग गयी किसी को मेसिज भेज रही थी। उसका ध्यान फ़ोन में ही था जबसे आयी थी। कुछ अटपटे से हावभाव थे उसके चेहरे पर। कभी शांत, कभी अशांत, कभी गम्भीर, कभी नम। कुछ तो मामला गड़बड़ है। मैने हिम्मत करके पूछ ही लिया क्या हुआ कुछ परेशान लग रही हो आप। सब ठीक है। उसने देखा मेरी तरफ़ और बोली हाँ हाँ सब ठीक है। मम्मी चिंता कर रही है। अकेले कभी ऐसे गयी नहीं तो बहुत चिंतित हैं। मैने भी ताव मैं आ कर बोल दिया उनको बोल दो जान पहचान का एक दोस्त भी इलाहाबाद ही जा रहा है। चिंता और परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं उस पर उसने सिर्फ़ हल्के से होंट हिलाए जैसे की जा ना क्यूँ ख़ामाखा चिपक रहा है। मदद तो ठीक है लेकिन अब ओवर मत कर समझा। मैं पैर मोड़ कर बैठा था आधे बर्थ पर और आधे पर आलती पालती मार कर बैठी थी वो। चीचा की नज़र मुझ पर पड़ी जैसे ही उन्होंने आँखों से मुझे बेवक़ूफ़ कह दिया की तू रहने दे तेरे से ना पटेगी। क्यूँ अपना वक़्त ख़राब और उसको ऊँगली कर रहा है। लड़का कैसे हार मान ले जब तक लड़की ना बोल दे भाड़ में जाएगा या वहाँ तक धक्का दूँ तुझे। इशिता ने अपना खाना निकाला और खाना शुरू किया उसको देख कर चीचा ने और मैने भी अपना खाना निकाल लिया। इशिता को मिर्ची लगी लेकिन मैडम के पास पानी नहीं। खाँस खाँस के बर्थ में शोर मचा दिया लड़की ने। चीचा बोले देख स्टेशन आ गया तुरंत भाग कर पानी की बोतल लेते आ। मैं फिर मदद के लिए तत्पर तुरंत स्टेशन से पानी की बोतल लपक लाया और इशिता को दे दी। उसने पानी पीया और थैंक यू बोल दिया। रेल दौड़ती जा रही थी अपने आख़िरी स्टेशन की तरफ़ लेकिन अपनी प्यार की रेल, पटरी पर दौड़ना तो छोड़ो चलने का नाम तक नहीं ले रही थी। थोड़ी देर बाद उसने बोला निखिल क्या तुम मेरा फ़ोन रीचार्ज कर सकते हो। वलिडिटी ख़त्म हो गयी। मैं घर जा कर तुमको टिकट और रीचार्ज के पैसे अकाउंट में डलवा दूँगी। सहायता के पास कोई आता है तो तुरंत सहयोग करती है। मैने रीचार्ज कर दिया। और वो फ़ोन में लगी है मेसिज पर मेसिज। यहाँ मैं प्रयास कर रहा हूँ दूसरी तरफ़ मैडम किसी और से  बातें करने में व्यस्त हैं।
रीचार्ज करने के कुछ मिनट बाद मैडम ने फ़ोन लगाया और बात करने लगी और इतनी धीरे धीरे बोल रही थी की कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था कि क्या बोल रही है। मैं उल्लू के जैसे उसको देख रहा था इधर उधर देखते देखते। चीचा भी अख़बार, बाहर के नज़ारे और खाने का आनंद लेके नींद की आग़ोश में लीन हो गए। थोड़ी देर बाद इशिता बोली क्या आप ऊपर सो सकते हो निखिल। एक तो इसकी आवाज़ इतनी मधुर की कोई भी सुनते ही सम्मोहित हो जाए। मैने बोला हाँ सो सकता हूँ। उसका इतना भारी बैग जो मैने उठा कर ऊपर रखा था फिर उसको नीचे उतारा और बर्थ के नीचे घुसा कर रख दिया अपने बैग के बग़ल में। मैं जब तक बैग ऊपर नीचे करने में लगा था इतने में इशिता ने पैर पसार लिए मेरी सीट पर और मैं खड़ा उसको देख रहा हूँ। उसने मेरी तरफ़ देखा और बोली गुड नाइट निखिल। मैडम लेट गयी कम्बल तान कर हैडफ़ोन लगाया और ख़ुसूर-फ़सूर चलती रही रातभर। मैं पूरी कोशिश कर रहा था सुनने का लेकिन सुनाई कैसे देगा रेल की छुक-छुक, उसकी तेज़ सीटी, पटरी की पटर पटर का शोर बहुत ज़्यादा था। कोशिश करते करते मैं कब सो गया पता ही नहीं चला। सुबह चीचा ने उठाया। नीचे उतरा तो बर्थ ख़ाली था मैने पूछा कहाँ गयी। वो बोले मैं जब उठा तो वो जा चुकी थी। यहाँ रात में उसको अपने माँ बाप से मिलवा दिया। दोस्तों ने उसको भाभी मान  लिया। अपना रेलेशन्शिप स्टैटस कमिटेड कर दिया। सोच लिया था अब से सैलरी में से सेविंग करना ज़रूरी है। भविष्य के लिए पॉलिसी तक चुन ली थी। 
रेल में प्यार के खेल में लोंडा फ़ेल हो चुका था।  कितनी ही बार कितने की लड़कों को रेल यात्रा के दौरान एक तरफ़ा प्यार होता और यात्रा ख़त्म होते होते प्यार भी ख़त्म हो जाता है। कुछ महाशय ऐसा प्यार बार बार करते हैं और कुछ टिकट के पैसे और फ़ोन रीचार्ज करके सुधर जाते हैं। 








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