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Short Story 



"चलो पंजाब"  


सन 2004, 19 जनवरी।  
मैं और मेरे नौ दोस्तों की मंडली निकली पठानकोट हमारे दोस्त विक्की की बहन की शादी के लिए पंजाब। दिल्ली रेल्वे स्टेशन से ट्रेन पकड़ी और सफ़र के लिए सब अपने-अपने हिसाब किताब से साजों सामान लेकर आए थे खाने का, ध्रुमपान, मदिरापान और मनोरंजन का जैसे सतरंज, लूडो, ताश। सर्दी में ट्रेन यात्रा मैने बहुत कम की थी वो भी ऐसे इतने बड़े जमघट के साथ तो मैं बहुत ही रोमांचित और अत्यंत ख़ुश था। मेरे साथ मेरा भाई और अज़ीज़ दोस्त डिम्पल था। बचपन से ही हम दोनों के दूसरे के पक्के याड़ी मतलब कोई त्योहार हो साथ, कोई खेल हो साथ, कहीं जाना हो साथ, DJ पे डान्स करना हो साथ, माँ बाप से गाली खानी हो साथ, किसी से झगड़ा करना हो साथ, लड़की पटानी हो साथ जहाँ तक सोच सकते हो वहाँ तक साथ। विक्की भी बहुत ख़ास दोस्तों में से एक इसलिए तो उसकी बहन की शादी में जा रहे हैं। ट्रेन ने प्लाट्फ़ोर्म से छुक-छुक सीटी मारते हुए चलना शुरू किया और हम सब ने ज़ोर की शोर मचाया "जय माता दी" बोल कर। सब बहुत ख़ुश और मस्ती में चूर। एक अलग ही रंग और रौनक़ थी सबके चेहरे पे मानो ख़ुशियों ने सबके चेहरे को चूमा हो। एक घंटे बाद जब कुछ दूर तलक ट्रेन पहुँची और बाक़ी सभी यात्री अपनी - अपनी सीटों पे बैठ गए और हलचल कम हुई तो फिर हमारे दिमाग़ों में हलचल होनी शुरू हुई कि ऐसे कैसे चुप-चुप सफ़र कटेगा या काटा जाएगा। सब ने आँखों-आँखों में एक दूसरे को इशारा किया और जश्न की तैयारी शुरू। किसी ने मदिरा निकाली, किसी ने ताश, किसी ने ध्रुमपान। हँसी मज़ाक़ का माहौल और महफ़िल बन चुकी थी। कुछ लोग ताश खेल रहे थे, कुछ लोग शतरंज, कुछ लोग बातें और कुछ लोग मदिरा और ध्रुमपान। सब अपने-अपने रंग बिखेर रहे थे रात की तखती पर। जहाँ-जहाँ ट्रेन रुकी वहाँ-वहाँ से कुछ ना कुछ खाने को लिया। जितने भी स्टेशन से सबसे कुछ ना कुछ ख़रीदा स्वाद के लिए। सच कहूँ तो बहुत ही मज़ेदार और ज़ायक़ेदार सफ़र था। आधी रात बीत चुकी थी हँसी ठहाका करते-करते। फिर विक्की की मौसी के बेटे जो की हम सब में बड़े थे उन्होंने कहा अब बस करो सो लो वरना वहाँ पहुँच के सोते रहोगे तो क्या धूम धड़का करोगे। बात में दम था उनकी तो सबकी समझ में तुरंत आ गया और सब ने अपना-अपना कौन पकड़ा और चादर तानी। 

सुबह स्टेशन पर लेने आया विक्की और उसकी बुआ का बेटा। ट्रेन से बाहर निकले तब सिर्फ़ ठंड का एहसास हुआ की सर्दी है क्यूँकि दिल्ली से हैं तो वहाँ भी ठंड जान लेवा ही पड़ती है। लेकिन जैसे ही स्टेशन से बाहर पहुँचे ऐसा लगा जैसे किसी ने कोल्ड स्टॉरिज में बिठा दिया। इतनी सर्दी की उँगलियों में दर्द होने लगा। कोई किसी से बात ही नहीं कर रहा इतना ठंडा मौसम। सब बस गाड़ियों में बैठना चाहते थे तुरंत। निकले रेल्वे स्टेशन से विक्की के गाँव जो की पठानकोट से पच्चीस किलोमीटर था। सब के सब गाड़ियों में काँप रहे थे कोई किसी से कोई बात ही नहीं कर रहा था और मुझे तो सर्दी दिल्ली में इतनी लगती थी यहाँ मेरा क्या हाल हो रहा होगा आप समझ ही सकते हैं। गाँव पहुँचे छोटी कोटली। सुबह का ही वक़्त था सूर्या देवता आज अवकाश पर थे। इसलिए सर्दी अलग स्तर पर अपने उफान और तूफ़ान पे थी। विक्की ने देखा सब सन्नाटे में सर्दी की वजह से तो तुरंत आग जलवाई और बोला बैठ जाओ। सब ने ख़ुद को आग के सामने झोंक दिया हो मानो। कुछ देर बाद जब शरीर का तापमान नियंत्रित स्तिथि में आया तब धीरे-धीरे सब के मुँह खुलने लगे और तब लगा की शहर से कुछ लोग नहीं पूरा शहर आया है गाँव में। मतलब हँसी और मज़ाक़ की लड़ी लग गयी हो। कोई ऐसा नहीं था विक्की के घर में या आस पड़ोस में जो वहाँ मौजूद हो और वो पेट पकड़ के लेट ना गया हो हँसते-हँसते। सब के सब एक से बड़ कर एक जुमलेबाज और मस्तिखोर, मज़ाक़िया। ख़ुद पर जुमला कहना तो सब की आदत सी थी। ये एक बहुत ही ख़ूबसूरत आदत थी सब की क्यूँकि किसी दूसरे पे व्यंग कसना या उसका मज़ाक़ बनाना कई बार दुःखदाईं होता है। लेकिन यहाँ ऐसा नहीं था सब के सब मज़ाक़ करना और मज़ाक़ सहना दोनों बख़ूबी जानते थे। हम सबको देख कर विक्की की बहन जो की हम सब की दिल अज़ीज़ बहन थी। उसका मुझसे, डिम्पल और बाक़ी जितने भी वहाँ गए थे सबसे बहुत प्रेम भाव था। सबको अपने भाई की तरह ही प्यार करती थी। बहुत समझदार और सुलझी हुई लड़की। विक्की के डैडी और मम्मी दोनों ही बहुत प्रेमी इंसान ख़ासतौर से उसकी मम्मी। उनसे मेरा अलग ही लगाव था। बहुत ही प्यार से बात करती थीं। हमेशा हालचाल पूछना जहाँ भी मिलती। सबकी ख़ैर ख़बर लेती और कुशल मंगल कहना। चाय नाश्ते का बंदोबस्त हो चुका था आग भी तापी जा चुकी थी। चाय नाश्ते के बाद थोड़ा आराम का सोचा जा रहा था ये मेरे और डिम्पल के दिमाग़ में उपज रहा था कि धीरे से विक्की के बुआ के बेटे ने जिससे हम सब मिल चुके थे दिल्ली में क्यूँकि वो भी आता जाता था। बोला पिंड के बाहर ठेका है जहाँ बीयर, रम और विस्की मिलती है। सर्दी है यहाँ बहुत, उसके बिना एक आद कम ना हो जाए तुम में से। सब को पीने का बहाना चाहिए था तुरंत बोले किधर है रास्ता। मैं और डिम्पल भी बोले चलो। हाँ-हाँ! बता किधर है रास्ता। सब पहुँचे गाँव के बाहर दाँयी ओर देसी ठेका और बायें हाथ को मुड़ते ही अंग्रेज़ी ठेका जिसके साथ ढाबा। रम और विस्की ली। ढाबा और ठेका एक ही मालिक का था तो खाना पीना दोनों एक ही जगह मतलब सोने पे सुहागा। सर्दी की बे-दर्दी मिटाने के चक्कर में सब ने गले तक टिका ली बिना सोचे समझे की लड़की की शादी में आए हैं। काम काज भी होंगे बहुत जिसमें हाथ बटाना होगा। विक्की, मैं, डिम्पल और बाक़ी सब पी कर टाइट। और वहीं खटिया पर सब के सब ढेर। दूसरी तरफ़ अंकल जी पूछ रहे हैं कहाँ हैं सब के सब। कोई बोला सो रहे होंगे तो कोई बोला सब गाँव में घूमने गए। दो से तीन घंटे जब बीत गए और अंकल जी को विक्की भी नहीं दिखा तो उन्होंने अपने भाई के बेटे अमन को भेजा, जा देख कर आ कहाँ सो रहे हैं सब के सब और ये विक्की कहाँ ग़ायब है कहीं वो भी जा कर सो तो नहीं गया सब के साथ। बहन की शादी है और इसको सब काम छोड़ के दोस्तों के साथ रहना है गधा कहीं का। अमन आया जिस हॉल में हम सबके रहने का बंदोबस्त था वहाँ सिर्फ़ सब के बैग और कुछ नहीं। जैसे ही वो मुड़ा पीछे अंकल जी खड़े और बोले चल साथ मेरे। अंकल जी ने सोटा उठाया अमन को लिया। सीधे धमके पहले देसी शराब के ठेके पे वहाँ कोई नहीं फिर बायें मुड़े और सीधा विक्की की खाट के सामने। उसको घुमा के एक सोटा मारा उसका सारा नशा उतर गया क़सम से। सबकी आँखों के आगे जुगनू उड़ने लगे हों जैसे। अंकल ने सब पर हाथ फेर दिया और साथ ही साथ माँ बहन कर डाली। सब ने दौड़ लगा ली घर की तरफ़ आगे-आगे विक्की और पीछे-पीछे बाक़ी सब। घर पहुँचे सब हँसने लगे देख कर हमें क्यूँकि हमसे पहले अमन ने ढोल पीट दिया सबकी पिटायी का और आंटी ने भी मन भर कर गालियाँ दी सब को। 

दोपहर में पूरे गाँव के लोगों को भोज कराया जाता है। अपने साथ एक मियाँ अपने भाई मो.अकील उर्फ़ लल्ला जिसने मज़ाक़ करने में पी एच डी की हुई थी। मियाँ जी बात-बात पे कॉमडी करता। उसके बोलने का लहज़ा कमाल। कुछ भी कह दे आप हँस पड़ेंगे। ये सब इसलिए बताया क्यूँकि भोज में गाँव के सब लोग खाने के लिए बुलाए जाते हैं। हर उम्र के मर्द, औरत, बुज़ुर्ग, लड़कियाँ, बच्चें सबको खाना परोसा जाता है। तीन से चार पाँत बनाई जाती है जिसमें पंद्रह से बीस लोग हर पाँत में बैठते हैं। कोई भी बैठ सकता है किसी भी उम्र का हो वो और किसी भी लिंग का। भोज खिलाने के ज़िम्मे में मुझे मिला सबको पानी देने का, डिम्पल को चावल और मियाँ जी को दाल परोसने का। मियाँ जी बीच-बीच में कुछ-कुछ कह दें और जो सुन ले हम में से वो हँस पड़े ।लेकिन ये सब हरकतें अंकल जी को अच्छी ना लगे परंतु कुछ कह नहीं रहे थे कहीं ना कहीं उनको भी पता था कुछ कह के फ़ायदा नहीं इन धीटों को। कुछ कहना होता था तो बस बोलते अच्छे से खिलाओ ढीले मत पड़ो और सब पर ध्यान दो इधर उधर की बातें बाद में कर लेना। मियाँ जी ज़ोरों शोरों से सबको खिलाने में लगा हुआ जो दाल माँगे उसको एक नहीं बल्कि दो कडची दाल डाल दे। डिम्पल भी चावल भर-भर के थालियों में डाले जा रहा था। विक्की ने देखा और बोला सालों मेरे बाप से ऐसे बदला लोगे तुम दोनों। भाई इतना क्यूँ परोस रहे हो नहीं खाया तो फैंकना पड़ेगा। लेकिन दोनों बाज़ ही नहीं आ रहे थे। इसी बीच एक सुंदर ही लड़की माँ दी दाल माँग रही थी। लल्ला को उसने दो तीन बार कहा लेकिन पंजाबी उच्चारण में कहा तो उसको समझ भी नहीं आया और मियाँ दाल परोसने नहीं बेचने में लगा था चिल्ला-चिल्ला कर दाल-दाल कहे जा रहा था। जब वो चौथी बार पहुँचा तो लड़की ने उसके पैर को पकड़ लिया और बोली माँ दी दाल इतनी देर से माँग रही हूँ वो भी पंजाबी में । लल्ला को कुछ और ही समझ आया और उसने दाल का डोंगा लिए विक्की को जा कर बोला वो मुझे माँ की गाली दे रही है। तेरे गाँव की लड़कियाँ गालियाँ देती हैं बे। तेरा बाप गाली दे, तेरी माँ गाली दे और अब तेरे गाँव की लड़की भी गाली दे इसलिए बुलाया क्या तूने हमें। मैं जा रहा हूँ दिल्ली वापस मेरे आने जाने की टिकट के पैसे दे। विक्की हँसने लगा और बोला थम जा भाई साला जब देखो ड्रामा करने लगता है किसने दी गाली कौन सी लड़की है चल दिखा। विक्की पहुँचा लड़की के पास उसने पंजाबी में ही पूछा क्या कहा इसको वो बोली वीर जी माँ दी दाल मंग्गी सी। इन्होंने दी ही नहीं इतनी बार बोली तो वो दूसरे वीर ने दे दी। लल्ला को विक्की ने आँखों से ही कई गालियाँ दे डाली वहीं खड़े-खड़े ही। बोला हाँ-हाँ ठीक है बिना सुने और समझे ही की लड़की ने क्या कहा लल्ला को समझ आ गया की समझने में उसके ग़लतफ़ेमी हुई। मैं पानी का जग लिए घूम रहा था तो इस घटना का चश्मदीद गवा था। लल्ला ने मुझे देखा और कहा तू हल्ला तो करेगा अब इस बात का। तुझे चैन तो पड़ेगा नहीं मेरी बेइज्जती किए बिना। तेरे चेहरे पे ख़ुशी का बुलबुला तांडव कर रहा है वो मैं देख सकता हूँ कमीने। मैं हँसता हुआ निकल गया पानी-पानी बोलता।  

रात के सात बज चुके थे। अँधेरा पूरे शबाब पर और सर्दी पूरे ताव में। इसी बीच हमारे एक भाई साहेब की सोच में शौच ने दस्तक दी जिसका दबाव उनसे झेला नहीं जा रहा था। लेकिन इतनी सर्दी में कोई कम्बल में से बाहर कैसे निकले और अकेले खेत में जाने में उनकी जान निकल रही थी डर से। गाँव खेड़ों में भूत प्रेत के क़िस्से मशहूर होते ही हैं। सबसे कह-कह कर हार गए कोई जाने को तैयार नहीं हुआ फिर उनकी रोनी सूरत पे तरस आ गया सबको और सब उठ कर खड़े हुए लेकिन ये तरस या प्रेम नहीं था बल्कि मेरा और मेरे एक दोस्त के दिमाग़ की करतूत को अंजाम देने का मौक़ा था। अमन को बोला जा इनको खेत में ले कर और जब सोनू भईया आता हुआ दिखे तो तू डर के भागने लगना जैसा कोई भूत देख लिया हो समझा और हँसना नहीं बिलकुल भी। सब समझा दिया गया अमन को और वो लेके गया भाई साहेब को खेत में। धूँध पड़ रही थी दूर का कुछ नहीं दिख रहा था साफ़ साफ़ लेकिन क़रीब आने पर आप देख सकते थे अच्छे से। शौच की प्रक्रिया शुरू हुई हम सब थोड़ी ही दूरी पर खड़े थे। सोनू को मैने अपना कम्बल दिया उसने मुँह पे सफ़ेद कपड़ा बांधा सर ढाका कम्बल से और उसपे हैट पहनी। मुँह में जलती बीड़ी लगाई और उनकी तरफ़ जाने लगा हम सब इधर उधर खड़े हो गए छुप कर। जब सोनू क़रीब पहुँचा तो अमन ने देखा और वो भागने लगा भाई साहेब बोले क्या हुआ वो बोला वो-वो इतने में सोनू ने उनके काँधे पे हाथ रखा और बोला माचिस है बीड़ी जलानी है। उन्होंने ध्यान से देखा तक नहीं वो उठे भागने को पैंट नीचे थी वो गिर पड़े और चिल्लाने लगे। कुछ सेकंड तक सोनू ऐसे ही रहा लेकिन फिर देखा भाई साहेब को बोल नहीं रहे और अब वो डर गया उसने आवाज़ लगाई हम सब भागे तो भाई साहेब के मुँह से झाग। सबकी बत्ती गुल की ये क्या कर दिया मज़ाक़-मज़ाक़ में, तुरंत लोटे का पानी जिससे उनको अपना पीछवाडा धोना था उससे उनका मुँह धुल गया। ठंडा पानी मुँह पर गिरते ही तुरंत फड़फड़ा कर कौन है-कौन है करने लगे तब जा कर सबकी जान में जान आयी। उनको उठाया पीछवाडा धुलवा कर सबकी हँसी सीने और गले में अटकी हुई थी कि थोड़ा भाई साहेब शांत हों तो मज़े लिए जाए लेकिन मेरी और सोनू की तो हवायियाँ उड़ गयीं थी क्यूँकि ये ख़ुराफ़ात हम दोनों के दिमाग़ की उपज थी। सोनू मेरे पास आया जब भाई साहेब कमरे में गए कि साले तेरे चक्कर में मर्डर केस लगता आज मुझे। कमज़ोर दिल के बंदे के साथ ऐसा मज़ाक़ फिर मत करने को कहियो समझा। शादी में आया था थोड़ी देर के लिए जेल जाता हुआ दिख रहा था मुझे। मैं बोला भाई मुझे भी वही दिखा कि तू जेल जा रहा है। ये बोल कर मैं हँसने लगा और वो चिढ़ गया बोला अकेले नहीं जाता साजिस रचने के इल्ज़ाम में तुझे भी अंदर करवाता बेटे। रात भर सब अपनी हँसी दबा कर सो गए सुबह सबसे पहले सोनू उठा और किसी ने कमरे के गेट पर शौच किया हुआ था। सोनू का पैर सीधा शौच पर मतलब उसका मुँह देखने लायक था उसने इतनी गालियाँ दी पूछो मत। डिम्पल बोला कर्मों का फल है तेरे जो तुझे मिला। मैं हँस-हँस कर गिर गया। उसकी शक्ल देखने लायक थी। फिर विक्की ने उसको साफ़ करवाया किसी से। 

पूरा दिन सोनू और भाई साहेब का जो मज़ाक़ बनाया सब ने ख़ासतौर से लल्ला,विक्की और डिम्पल ने पूछो मत। मैं जैसे ही हँसु सोनू मारने को दौड़े। मैं कहूँ भाई मैने थोड़ी हगा दरवाज़े पर। जैसी करनी वैसी भरनी। किया तो तूने ही ना भाई साहेब के साथ ऐसा घिनौना मज़ाक़। मैं कहूँ कुएँ में कूद जा कूदेगा क्या। इसी दिन सुबह-सुबह सोनू की केक कटिंग के बाद सब लोगों को हमारे बंटी भईया लेके गए नहर दिखाने और बोले इस नहर में हम लोग ख़ूब नहाए हैं। तुम लोगों को भी नहा लेना चाहिए मतलब एक डिग्री तापमान में इंसान नहा कर स्वर्ग नरक कहीं तो सिधार ही जाएगा। लेकिन अपने जा-बाज़ लड़के आख़िरकार मान गए। विक्की, लल्ला, डिम्पल और भी बाक़ी सब कूदे मुझे भाई साहेब को छोड़ कर। बंटी भईया थे एक सौ बीस किलो के खाते पीते गबरू जवान मर्द। वो पानी में कूदे लल्ला पानी से बाहर और विक्की, डिम्पल सतह पर। मैं और भाई साहेब किनारे पर खड़े=खड़े ही भीग गए जैसे हम भी पानी में कूदे हों। कंपकंपी ने सांसें रोकने की ठान ली और कम्पन से पूरा शरीर थर्रा रहा था। जैसे तैसे घर तक आए काँपते-काँपते। बंटी भईया टस से मस ना हुए पता नहीं कौन सी चर्बी के बने थे। यहाँ ठंड से जान पर बन आयी थी सबकी। उन्होंने सब को रम का एक-एक पैग लगवा दिया दिन दहाड़े। वो भी ख़ाली पेट क्यूँकि सब खेत में गए थे पेट ख़ाली करने और उसके बाद आ कर बाक़ी सभी गतिविधियाँ की जाती। उससे पहले ही इन्होंने सबको पानी में कुदवा दिया चढ़ा कर। अंकल बुलाए जाए सब को लेकिन यहाँ सबको चढ़ गयी ख़ाली पेट दारू। नाश्ता बन रहा था और गाँव के बाहर ढाबे पे जा नहीं सकते थे क्यूँकि आज शादी थी। हिले तो अंकल जी ने पूरा घर हिला देना है आज। सब नज़रें झुकाए मुँह छुपाए बस इधर उधर खड़े। अंकल बुलाएँ तो जाएँ वरना चुपचाप आ कर कुर्सी पर या खटिया पर बैठ जाते। जब तक उतरी नहीं सबकी तब तक सब घबराए-घबराए घूम रहे थे घर में और घर के बाहर। शाम पाँच बजे अचानक बरसाती बादल छा गए। सबको लगा सर्दी के मौसम में ऐसे बादल आते जाते हैं। बारात आयी सब खाने के लिए प्लेट्स लेने लगे वैसे ही घमाशान बारिश जो रुकने का नाम ही ना ले। एक राउंड टेबल के नीचे मैं और डिम्पल एक ही प्लेट में खाने में लगे थे तंबू के भीतर ही। पूरे तंबू में कोई नहीं सिर्फ़ हम दोनों और खाने की प्लेट जो की पूरी तरह से भरी थी तरह-तरह के व्यंजनों से। जब गले तक ठूँस लिया तब टेबल के नीचे से निकले और भीगते हुए डकार मारते घर पहुँचे। जहाँ अंकल जी बहुत दुखी और मायूश बैठे थे इस तरह की प्राकृतिक आपदा के वजह से। सब उनसे बात कर रहे थे लेकिन माता पिता तो माता पिता हैं हमेशा अपने बच्चों का  भला ही चाहते हैं। बारिश रात भर होती रही। किसी ने कहा उलटा तवा रख दो बारिश रुक जाएगी वो किया गया। किसी ने कहा चिमटा बजाओ वो भी किया गया। किसी ने कुछ तो किसी ने कुछ लेकिन इंद्र देव आज अलग ही मिज़ाज में थे। घर के आँगन में त्रिपाल से ढका हुआ मंडप बनाया गया और वहीं शादी हुई। हम सब रात भर जागते रहे सब ने पूरी मेहनत की घर के एक-एक इंसान ने कोई कसर नहीं छोड़ी अपना पूरा फ़र्ज़ निभाया। सुबह बिदायी हुई और उसके बाद सब शांति से बैठे तब तक भी बारिश हो ही रही थी लेकिन मुसलाधार नहीं रिमझिम। अंकल ने जब हम सब सो के उठे और गए आँगन में घर के जहाँ सबके लिए चाय नाश्ता बन रहा था। तब अंकल ने सबको हाथ जोड़ कर शुक्रिया कहा और कहते-कहते उनकी आँख भर गयी। हमारे बुज़ुर्ग हमेशा हमारा भला ही चाहते हैं उनके ग़ुस्से में हमारी फ़िक्री होती है बस।






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